Sharda Sinha Death: सलमान की हिट फिल्म के लिए गाना…पढ़िए शारदा सिन्हा का सफरनामा
शारदा सिन्हा का नाम बिहार की लोक संगीत की दुनिया में एक प्रतिष्ठित नाम है।
Sharda Sinha Death: बिहार की प्रसिद्ध लोकगायिका शारदा सिन्हा अब हमारे बीच नहीं रहीं। 5 नवंबर को दिल्ली के एम्स अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समेत राजनीति से लेकर संगीत जगत से जुड़े तमाम लोगों ने उनके निधन पर दुख व्यक्त किया। जर्नलिस्ट इंडिया भी शारदा सिन्हा को नम आंखों से श्रद्धाजलि अर्पित करता है।
जर्नलिस्ट इंडिया की इस रिपोर्ट में आज हम शारदा सिन्हा के सफरनामे पर एक नजर डालेंगे। जानेंगे संगीत जगत में उनके कदम रखने की कहानी। उनको मिले सम्मान और बॉलीवुड में रखे उनके कदम से जुड़े तमाम किस्से।
कौन थीं शारदा सिन्हा?
शारदा सिन्हा का नाम बिहार की लोक संगीत की दुनिया में एक प्रतिष्ठित नाम है। शारदा सिन्हा ने अपने जीवन के संघर्षपूर्ण दिनों से लेकर शिखर तक की यात्रा एक प्रेरणा के रूप में तय की। शारदा सिन्हा का संगीत शुद्ध लोक धारा से जुड़ा था। विशेष रूप से बिहारी लोक संगीत, छठ पूजा गीत, और भोजपुरी संगीत की दुनिया में एक प्रमुख नाम थीं। हालांकि उनके बॉलीवुड में भी काम किया।
शारदा सिन्हा का शुरुआती जीवन
शारदा सिन्हा का जन्म 1 अक्टूबर 1952 को बिहार के बक्सर जिले के एक छोटे से गांव दरौली में हुआ था। वे एक संगीतप्रेमी परिवार में पैदा हुईं, जहाँ संगीत का महत्व पहले से था। शारदा की मां भी एक अच्छी गायिका थीं, और उनके पिताजी भी संगीत के प्रति रुचि रखते थे। घर में संगीत का वातावरण था, और शारदा को भी बहुत जल्दी संगीत की ओर रुझान होने लगा।
उनके घर में एक संगीत आचार्य थे जिन्होंने शारदा को शास्त्रीय संगीत की बारीकियां सिखाईं। शारदा की प्रारंभिक शिक्षा भी उनके गांव के स्कूल में हुई, लेकिन उनका असली जुड़ाव संगीत से तब हुआ जब उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से संगीत में औपचारिक शिक्षा लेना शुरू किया।
संगीत की दुनिया में कदम
शारदा सिन्हा ने अपनी गायन यात्रा की शुरुआत बहुत ही छोटे स्तर से की थी। उनका गाया हुआ पहला लोकगीत बिहार के लोकप्रिय रेडियो स्टेशन, आकाशवाणी से प्रसारित हुआ। इसके बाद उनका नाम तेजी से लोकप्रिय होने लगा। उन्होंने शास्त्रीय संगीत के साथ-साथ पारंपरिक और लोक संगीत की दिशा में भी गाया।
शारदा सिन्हा का प्रमुख योगदान बिहार की लोक संस्कृति और संगीत के प्रति था। उन्होंने बिहारी लोक गीतों, विदेशी रागों और ध्रुपद संगीत में अपनी आवाज़ का जादू बिखेरा। उनके गाए हुए लोक गीतों में एक खास बिहारियत की महक होती है, जो सीधे दिल को छूने वाली होती है। उनकी गायन शैली ने बिहार के पारंपरिक लोक संगीत को एक नई पहचान दी।
प्रसिद्धि की ओर यात्रा
शारदा सिन्हा की असली पहचान 1980 के दशक में मिली, जब उन्होंने “हरियर बिहार” जैसे लोक गीत गाए। उनके गीतों में बेतहाशा प्यार, बिहार के परंपराओं और ग्रामीण जीवन का गहरा चित्रण था। उनकी आवाज़ ने न केवल बिहार, बल्कि देश के अन्य हिस्सों में भी लोगों का दिल जीता।
इसके बाद शारदा सिन्हा ने देशभर में विभिन्न मंचों पर लोक गायन किया। वे विशेष रूप से अपने छठ पूजा गीतों के लिए प्रसिद्ध हैं। “छठी मैया के गीत”, “सिन्हा जी के गीत” और “पलंग तोड़ के” जैसे गाने आज भी लोगों के दिलों में बसे हुए हैं। इन गानों में शारदा सिन्हा की आवाज़ का ऐसा सम्मोहन था कि लोग उन्हें एक बार सुनकर बार-बार सुनना चाहते थे।
फिल्म इंडस्ट्री में योगदान
शारदा सिन्हा का योगदान सिर्फ लोक संगीत तक ही सीमित नहीं था, उन्होंने बॉलीवुड में भी कई गाने गाए। उन्होंने भोजपुरी सिनेमा के लिए भी कई हिट गाने दिए, जिनमें उनकी आवाज़ की मिठास और गायक की भावनाओं का अनूठा मेल था। उनका योगदान भोजपुरी सिनेमा और उसके संगीत को बहुत ही प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत करता है। शारदा सिन्हा का गाया हुआ गाना “पलंग तोड़ के” आज भी एक क्लासिक माना जाता है।
सम्मान और पुरस्कार
शारदा सिन्हा को उनके जीवन और संगीत यात्रा के लिए कई पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजा गया। उनमें से कुछ प्रमुख पुरस्कार हैं:
- पद्मश्री (2009): भारत सरकार द्वारा उन्हें संगीत के क्षेत्र में योगदान के लिए पद्मश्री पुरस्कार प्रदान किया गया।
- बिहार रत्न (2003): शारदा सिन्हा को बिहार सरकार द्वारा उनकी लोक संगीत में भूमिका के लिए बिहार रत्न से नवाजा गया।
- विभिन्न संगीत पुरस्कार और सम्मानों से भी उन्हें नवाजा गया है, जिनमें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और फिल्मफेयर अवार्ड जैसे पुरस्कार शामिल हैं।
सामाजिक कार्य और प्रभाव
शारदा सिन्हा ने न सिर्फ गायन में अपनी पहचान बनाई, बल्कि उन्होंने कई सामाजिक मुद्दों पर भी जागरूकता फैलाई। उनका गायन ग्रामीण जीवन की समस्याओं को उजागर करने में सहायक रहा है। विशेष रूप से उन्होंने महिलाओं के अधिकारों, कृषक समुदाय की समस्याओं और छठ पूजा जैसे सांस्कृतिक पर्वों को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। शारदा सिन्हा का मानना था कि संगीत एक ऐसा माध्यम है, जो समाज को जागरूक करने और एकजुट करने का काम करता है।
शारदा सिन्हा का संगीत यात्रा न केवल लोक संगीत का एक शानदार उदाहरण है, बल्कि यह भारतीय सांस्कृतिक धरोहर के प्रति उनके योगदान का प्रतीक भी है। उनकी आवाज़ में ऐसा जादू था, जो हर दिल में घर कर गया। शारदा सिन्हा ने अपनी गायकी से न केवल बिहार की लोक संस्कृति को बचाया, बल्कि उसे एक वैश्विक मंच पर प्रस्तुत किया। उनके संगीत के बिना बिहार की लोक धारा की कल्पना करना भी कठिन होगा।