फ्री की रेवड़ियां लोगों को बना रही हैं कामचोर, सुप्रीम कोर्ट की चिंता क्या राजनीतिक पार्टियों को आएगी समझ

Free Bies Politics पर Supreme Court नाराज, कहा आप लोगों को खराब कर रहे हैं | Journalist India

फ्री की रेवड़ियों पर सुप्रीम कोर्ट की चिंता: राजनीति और जनता के भविष्य पर सवाल : राजनीतिक पार्टियों द्वारा जो मुफ्त की रेवड़ियां बांटी जा रही है सुप्रीम कोर्ट ने इसकी कड़ी निंदा की है. सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक पार्टियों द्वारा फ्री वाली प्रथा को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है. कोर्ट ने कहा कि ऐसी प्रथाओं से लोग काम करने के इच्छुक नहीं है. क्योंकि उन्हें मुफ्त राशन और पैसा मिल रहा है. यह टिप्पणियाँ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने की जो शहरी क्षेत्रों में बेघर व्यक्तियों के आश्रय के अधिकार के एक मामले की सुनवाई कर रही थी। जस्टिस गवई ने कहा कि दुर्भाग्य से इन मुफ्त सुविधाओं की वजह से लोग काम करने को तैयार नहीं हैं। उन्हें मुफ्त में बिना कोई काम किए राशन और पैसा मिल रही है। दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले जब आम आदमी पार्टी ने मुफ्त की रेवड़ियां नाम से कैंपेन चलाया था तब भी इस तरह की मुफ्त बाटी जा रही चीजों को लेकर काफी विरोध हुआ था. उस समय कहा जा रहा था कि मुफ्त का राशन,बिजली ,पानी बांट कर राजनीतिक पार्टियां अपने वोट बैंक को तो तैयार कर लेती हैं लेकिन ये घोषणाएं निकम्मे लोगों की फौज भी तैयार कर रही है. जिनको राष्ट्र के विकास में योगदान देना चाहिए,वो लोग काम नहीं करना चाहते। जबकि टैक्स देने वालों को ही इसका बोझ उठाना पड़ता है.

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भारत में राजनीतिक दलों द्वारा जनता को लुभाने के लिए मुफ्त की सुविधाओं और वस्तुओं का वादा कोई नई बात नहीं है। चुनावों के दौरान ऐसी घोषणाएँ आम हो गई हैं, जिन्हें अक्सर “फ्री की रेवड़ियाँ” कहा जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रथा पर गहरी चिंता व्यक्त की और इसे देश की अर्थव्यवस्था और जनता की मानसिकता के लिए हानिकारक बताया। यह टिप्पणी न केवल राजनीतिक दलों के लिए एक चेतावनी है, बल्कि समाज और सरकार के बीच पारस्परिक संबंधों पर भी सवाल उठाती है।

राजनीतिक पार्टियों का रवैया और समाज पर प्रभाव

राजनीतिक दलों का मुफ्त सुविधाएँ देने का वादा मतदाताओं को लुभाने का आसान तरीका बन गया है। चाहे मुफ्त बिजली हो, पानी, कर्ज माफी, या इलैक्ट्रानिक उपकरण—इन सबका उद्देश्य वोट बैंक मजबूत करना होता है। लेकिन इससे जनता में एक ‘मुफ्तखोरी की मानसिकता’ विकसित हो रही है, जो देश के आर्थिक विकास और नागरिक जिम्मेदारी के सिद्धांतों के विपरीत है।

फ्री योजनाओं का असर दीर्घकालिक नहीं होता। जब जनता को मुफ्त चीजें दी जाती हैं, तो वे मेहनत और आत्मनिर्भरता के महत्व को भूलने लगती हैं। इससे न केवल संसाधनों की बर्बादी होती है, बल्कि उत्पादकता और नवाचार की भावना भी कमजोर हो जाती है।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी का महत्व

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि फ्री की रेवड़ियाँ सिर्फ आर्थिक नुकसान नहीं करतीं, बल्कि यह लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों के खिलाफ है। यदि राजनीतिक दल ऐसी योजनाओं का वादा करते हैं तो उन्हें यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि इसका वित्तीय स्रोत क्या होगा। यह जनता के सामने पारदर्शिता लाने और नेताओं को जवाबदेह बनाने का एक तरीका हो सकता है।

इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी कहा कि मुफ्तखोरी की इस संस्कृति को बढ़ावा देने से देश में सामाजिक विषमता और बढ़ेगी। अमीर और गरीब के बीच खाई बढ़ेगी क्योंकि मुफ्त सुविधाओं का लाभ हमेशा सही लोगों तक नहीं पहुँच पाता।

जनता की भूमिका और जिम्मेदारी

इस परिदृश्य में जनता को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। चुनाव के समय मुफ्त की सुविधाओं के लालच में आने के बजाय दीर्घकालिक विकास और नीति निर्माण पर ध्यान देना चाहिए। ऐसे नेताओं और दलों को चुनना चाहिए जो रोजगार, शिक्षा, और स्वास्थ्य जैसे बुनियादी मुद्दों पर काम करें।

कैसी होगी आगे की राह

  1. नीति निर्माण: सरकार को मुफ्त की योजनाओं पर एक स्पष्ट नीति बनानी चाहिए। केवल उन्हीं योजनाओं को अनुमति दी जानी चाहिए जो वास्तविक जरूरतमंदों तक पहुँचती हैं और जो अर्थव्यवस्था पर बोझ न बनें।
  1. जागरूकता: जनता को मुफ्त योजनाओं के नुकसान और दीर्घकालिक प्रभावों के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए।
  1. जवाबदेही: राजनीतिक दलों को वादों की वैधता साबित करनी होगी। इसके लिए एक स्वतंत्र निकाय बनाया जा सकता है जो इन योजनाओं का मूल्यांकन करे।

मुफ्त की रेवड़ियों का समाज पर दुसप्रभाव

सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी ने एक महत्वपूर्ण और विचारणीय मुद्दे को उजागर किया है। मुफ्त की रेवड़ियों का वादा न केवल राजनीति को कमजोर कर रहा है, बल्कि समाज को भी आत्मनिर्भरता और जिम्मेदारी से दूर कर रहा है। यह वक्त है कि जनता और राजनीतिक दल दोनों इस पर गंभीरता से विचार करें और एक ऐसा रास्ता अपनाएँ जो देश के आर्थिक और सामाजिक विकास को स्थायी रूप से मजबूत करे।

 

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