Social Media Guidelines : डिजिटल युग में सोशल मीडिया बच्चों और किशोरों की ज़िंदगी का अहम हिस्सा बन चुका है. पढ़ाई, मनोरंजन और संवाद के साथ-साथ यह प्लेटफॉर्म बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य, सुरक्षा और निजता के लिए नई चुनौतियां भी खड़ी कर रहा है. इसी पृष्ठभूमि में भारत में यह बहस तेज़ हुई है कि क्या 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया पर सख़्त गाइडलाइन या कानूनी नियंत्रण होना चाहिए, जैसा ऑस्ट्रेलिया ने किया है।
ऑस्ट्रेलिया मॉडल से उठे सवाल
ऑस्ट्रेलिया ने हाल ही में ऐसा कानून लागू किया है, जिसमें 16 साल से कम उम्र के बच्चों को प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर अकाउंट बनाने से रोका गया है. इस कानून का उद्देश्य बच्चों को साइबर बुलिंग, ऑनलाइन शोषण, अश्लील कंटेंट और मानसिक तनाव से बचाना है. इस कदम के बाद दुनिया भर में यह चर्चा शुरू हो गई कि क्या अन्य देश भी इस मॉडल को अपनाएं
भारत में क्यों ज़रूरी है यह चर्चा
भारत में इंटरनेट और स्मार्टफोन की पहुंच तेज़ी से बढ़ी है। आज छोटे बच्चे भी बिना किसी प्रभावी उम्र-सत्यापन के सोशल मीडिया का उपयोग कर रहे हैं। कई मामलों में बच्चों को हिंसक, भ्रामक या आपत्तिजनक सामग्री का सामना करना पड़ता है, जिसका असर उनके व्यवहार और मानसिक विकास पर पड़ सकता है।
कानूनी विशेषज्ञों और सुप्रीम कोर्ट से जुड़े एडवोकेट्स का मानना है कि बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा अब केवल परिवार या स्कूल की जिम्मेदारी नहीं रह गई है। राज्य और प्लेटफॉर्म्स की भी जवाबदेही तय होनी चाहिए।
क्या पूरी तरह बैन ही समाधान है?
कानूनी जानकारों की राय है कि केवल “बैन” ही हर समस्या का हल नहीं है। भारत जैसे विविध देश में ऐसा कानून बनाते समय संतुलन ज़रूरी है।
संभावित गाइडलाइन में ये बिंदु शामिल हो सकते हैं.
- उम्र-सत्यापन की अनिवार्य व्यवस्था
- पैरेंटल कंट्रोल को कानूनी मान्यता
- बच्चों के डेटा की सख़्त सुरक्षा
- हानिकारक कंटेंट पर तेज़ कार्रवाई
- स्कूलों और अभिभावकों के लिए डिजिटल जागरूकता कार्यक्रम
नीति-निर्माण बनाम न्यायिक हस्तक्षेप
सुप्रीम कोर्ट से जुड़े वकीलों का यह भी कहना है कि सोशल मीडिया से जुड़े नियम बनाना मुख्य रूप से नीति-निर्माण का विषय है, न कि सीधे अदालत का आदेश। अदालतें दिशा-निर्देश दे सकती हैं, लेकिन अंतिम फैसला सरकार और संसद को लेना होगा।
भविष्य की राह
अगर भारत ऑस्ट्रेलिया जैसे मॉडल पर विचार करता है, तो उसे अपनी सामाजिक, तकनीकी और कानूनी ज़रूरतों के अनुसार ढालना होगा। उद्देश्य यह होना चाहिए कि बच्चे डिजिटल दुनिया से कटें नहीं, बल्कि सुरक्षित और जिम्मेदार तरीके से उसका उपयोग कर सकें।
सोशल मीडिया बच्चों के लिए अवसर भी है और जोखिम भी। ऐसे में 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए स्पष्ट, मजबूत और व्यवहारिक गाइडलाइन बनाना समय की मांग है। यह कदम न केवल बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा, बल्कि एक जिम्मेदार डिजिटल समाज की नींव भी रखेगा।