Acharya Satyendra Das News : साधु-संतों को जल समाधि देने की परंपरा भारतीय धार्मिक और आध्यात्मिक परंपराओं से जुड़ी हुई है। हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद शरीर के अंतिम संस्कार के विभिन्न तरीके होते हैं, जिनमें अग्नि संस्कार, भू-समाधि और जल समाधि प्रमुख हैं। जल समाधि विशेष रूप से संन्यासी, योगी और महान संतों को दी जाती है। इसके पीछे कई धार्मिक, आध्यात्मिक और प्राकृतिक कारण होते हैं।

1. मोक्ष की प्राप्ति और पंचतत्वों में विलय
हिंदू दर्शन के अनुसार, शरीर पांच तत्वों—पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश—से मिलकर बना होता है। सामान्यतः, मृत शरीर का अग्नि संस्कार किया जाता है ताकि वह पंचतत्वों में विलीन हो जाए। लेकिन साधु-संतों के लिए जल समाधि दी जाती है क्योंकि यह जल तत्व में विलय का प्रतीक होती है, जिससे मोक्ष की प्राप्ति संभव मानी जाती है।
2. संन्यासी परंपरा
संन्यासी और साधु सांसारिक बंधनों से मुक्त होते हैं। वे अपने जीवन को त्याग और तपस्या में बिताते हैं और अपने शरीर को व्यक्तिगत संपत्ति नहीं मानते। इसलिए, उनके अंतिम संस्कार की विधि भी अलग होती है। अग्नि संस्कार की बजाय जल समाधि या भू-समाधि दी जाती है ताकि उनका शरीर भी प्रकृति में समाहित हो जाए।

3. जल का शुद्धिकरण और पवित्रता से संबंध
भारतीय संस्कृति में नदियों को पवित्र माना जाता है, विशेषकर गंगा, यमुना, नर्मदा, गोदावरी आदि। ऐसा माना जाता है कि इन पवित्र नदियों में जल समाधि लेने से आत्मा का शुद्धिकरण होता है और उसे मोक्ष प्राप्त होता है। यही कारण है कि कई संतों की जल समाधि पवित्र नदियों में दी जाती है।
4. विशेष परिस्थितियों में जल समाधि
कुछ संतों और योगियों द्वारा यह निर्णय लिया जाता है कि वे जल समाधि लेंगे। यह आत्म-संयम और आध्यात्मिक उपलब्धि का प्रतीक माना जाता है। इस प्रक्रिया में वे अपने अंतिम समय में जल में प्रवेश कर पूर्ण आत्मसमर्पण कर देते हैं।

5. पर्यावरण संतुलन और प्रकृति से जुड़ाव
साधु-संतों की जल समाधि पर्यावरण के अनुकूल होती है। अग्नि संस्कार में लकड़ी की अत्यधिक खपत और वायु प्रदूषण होता है, जबकि जल समाधि में शरीर धीरे-धीरे जल में घुलकर प्रकृति में विलीन हो जाता है। इससे पर्यावरण पर कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता।
6. दिव्य आत्माओं के प्रति सम्मान
ऐसा माना जाता है कि महान संतों और योगियों का शरीर अलौकिक ऊर्जा से भरा होता है। उनके शरीर को जल समाधि देने से यह ऊर्जा जल में प्रवाहित होती है और वातावरण को सकारात्मक रूप से प्रभावित करती है। यह भी एक कारण है कि कुछ महान संतों की जल समाधि दी जाती है।

आचार्य सतेन्द्र दास जी को दी गई जल समाधि
पिछले दिनों वृहस्पतिवार 13 फरवरी 2025 को अयोध्या राम मंदिर के मुख्य पुजारी रहे आचार्य सत्येंद्र दास जी को सरयू नदी में जल समाधि दी गई. आचार्य सत्येंद्र दास की अंतिम यात्रा वृहस्पतिवार यानी गुरुवार 13 फरवरी 2025 को अयोध्या स्थित उनके आवास से निकली गई. अतिम यात्रा को रामलला और हनुमानगढ़ी के दर्शन कराते हुए पवित्र सरयू नदी के तट पर पहुंची। जहां तुलसीघाट पर आचार्य सत्येंद्र दास जी को जलसमाधि दे दी गई। इस दौरान उनके अंतिम दर्शन के लिए हजारों की संख्या में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी और उन्हें अंतिम विदाई दी गई ।
क्या है जल समाधि का महत्व
सनातन संस्कृति में जल समाधि एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक परंपरा है जो साधु-संतों और संन्यासियों के लिए अपनाई जाती है। यह परंपरा पंचतत्वों में विलय, मोक्ष की प्राप्ति, पर्यावरण संतुलन और धार्मिक मान्यताओं से जुड़ी हुई है। साधु-संतों के लिए जल समाधि केवल एक अंतिम संस्कार विधि नहीं, बल्कि उनकी तपस्या और संन्यास के जीवन का अंतिम चरण मानी जाती है।

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