Delhi New Capital History : भारत के इतिहास में यह तारीख सिर्फ एक दिन नहीं, बल्कि एक ऐसा मोड़ है जिसने पूरे उपमहाद्वीप की राजनीतिक और प्रशासनिक संरचना को नया रूप दिया। इसी दिन ब्रिटिश सरकार ने भव्य दिल्ली दरबार में वह ऐतिहासिक घोषणा की, जिसने कलकत्ता (आज का कोलकाता) की जगह दिल्ली को भारत की नई राजधानी बना दिया। यह फैसला उस समय जितना अप्रत्याशित था, उतना ही दूरगामी प्रभाव वाला साबित हुआ।
दिल्ली दरबार: शक्ति प्रदर्शन और बदलाव का मंच
दिल्ली दरबार, ब्रिटिश साम्राज्य के वैभव और प्रभाव को दिखाने के लिए आयोजित एक भव्य आयोजन था। 1911 का दरबार खास था, क्योंकि इसमें इंग्लैंड के सम्राट जॉर्ज पंचम और रानी मेरी स्वयं भारत आए थे। उसी मंच से, हजारों अधिकारियों, रियासतों के राजाओं और विशिष्ट मेहमानों की उपस्थिति में, भारत की राजधानी को स्थानांतरित करने का ऐलान किया गया।
ऐसा कहा जाता है कि इस घोषणा ने पूरे दरबार को अचंभे में डाल दिया, क्योंकि किसी को इसकी पूर्व जानकारी नहीं थी। ब्रिटिश शासन के 150 साल के इतिहास में यह सबसे बड़े प्रशासनिक फैसलों में से एक था।

कलकत्ता क्यों छोड़ा गया?
1857 के बाद ब्रिटिश शासन की राजधानी कलकत्ता ही थी, लेकिन 20वीं शताब्दी की शुरुआत में शासन को यह शहर प्रशासनिक रूप से सीमित लगने लगा। बंगाल विभाजन (1905) और उसके बाद हुए आंदोलनों ने इस क्षेत्र को राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील बना दिया था। ऐसे में राजधानी का बोझ किसी ऐसे शहर को दिया जाना जरूरी हो गया जो:
- राजनीतिक रूप से स्थिर हो
- केंद्र में स्थित हो
- पूरे देश से आसानी से जुड़ सके
- ब्रिटिश शासन की शक्ति और वैभव को दर्शा सके
ब्रिटिशों को लगा कि कलकत्ता अब वह क्षमता नहीं रखता जो एक फेलती हुई सत्ता को चाहिए।
दिल्ली के चयन के पीछे ऐतिहासिक कारण
दिल्ली को नई राजधानी बनाने के पीछे कई गहरे कारण थे।
1. ऐतिहासिक विरासत:
दिल्ली सदियों से सत्ता का केंद्र रही—मौर्य, गुप्त, दिल्ली सल्तनत, मुगल साम्राज्य—लगभग सभी का राजनीतिक आधार यही रहा। ब्रिटिश इसे ‘भारत के प्राकृतिक सत्ता केंद्र’ के रूप में देखते थे।
- भौगोलिक स्थिति:
देश के उत्तर और केंद्र के बीच स्थित दिल्ली ब्रिटिश शासन के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण थी। यह भारत के प्रमुख हिस्सों से जोड़ने में अधिक सुविधाजनक थी। - राजनीतिक संदेश:
दिल्ली को राजधानी बनाकर ब्रिटिश, मुगल साम्राज्य और प्राचीन भारतीय सत्ता परंपरा के उत्तराधिकारी होने का संकेत दे रहे थे। यह एक राजनीतिक प्रतीकात्मकता भी थी। - प्रशासनिक सुविधा:
दिल्ली के आसपास के क्षेत्र में नई राजधानी के निर्माण के लिए अधिक भूमि उपलब्ध थी, जो योजनाबद्ध तरीके से आधुनिक शहर बनाने के लिए आवश्यक थी।
नई दिल्ली का निर्माण: आधुनिक भारत की नई पहचान

वार्षिक घोषणा के बाद नई राजधानी के निर्माण की तैयारियाँ तुरंत शुरू कर दी गईं। इसके लिए दो प्रसिद्ध वास्तुकार—
• सर एडविन लुटियंस
• सर हर्बर्ट बेकर
को बुलाया गया, जिन्होंने एक पूरी तरह नया प्रशासनिक शहर गढ़ने की योजना बनाई।
राष्ट्रपति भवन (तत्कालीन वायसराय हाउस), इंडिया गेट, नार्थ ब्लॉक, साउथ ब्लॉक, संसद भवन—ये सभी इसी वास्तु योजना का हिस्सा थे।
1931 में नई दिल्ली को आधिकारिक रूप से भारत की राजधानी घोषित कर दिया गया।
कैसे बदली दिल्ली की पहचान?
1911 की इस घोषणा ने दिल्ली के भूगोल और जनसंख्या दोनों को बदल दिया।
• दिल्ली तेजी से प्रशासनिक केंद्र बन गई
• व्यापार और रोजगार के अवसर बढ़े
• शिक्षा, संस्कृति और राजनीतिक जागरूकता में वृद्धि हुई
• देशभर से लोग दिल्ली की ओर आकर्षित होने लगे
यह कहना गलत नहीं होगा कि आज की आधुनिक दिल्ली, उसी ऐतिहासिक फैसला की देन है।
आज का परिप्रेक्ष्य
आज दिल्ली सिर्फ एक राजधानी नहीं, बल्कि भारत का दिल, लोकतंत्र का घर और संस्कृति की धड़कन है।
संसद भवन से लेकर राष्ट्रपति भवन और सुप्रीम कोर्ट तक—भारत के हर अहम फैसले की शुरुआत यहीं से होती है।
12 दिसंबर 1911 का फैसला न सिर्फ ब्रिटिश काल की एक घटना थी, बल्कि आज के भारत की शासन व्यवस्था की बुनियाद भी उसी दिन पड़ी थी।
दिल्ली को नई राजधानी बनाने का फैसला एक प्रशासनिक बदलाव से कहीं अधिक था। यह कदम भारत की ऐतिहासिक धुरी को फिर से दिल्ली केंद्रित करने की दिशा में था। आज भी जब हम दिल्ली की विशाल इमारतों, चौड़ी सड़कों और सत्ता के गलियारों को देखते हैं, तो वह 1911 का वही दरबार याद दिलाते हैं जिसने भारत की आधुनिक पहचान गढ़ने में निर्णायक भूमिका निभाई।