PM Modi Independence Day Speech : स्वतंत्रता दिवस के पावन अवसर पर लाल किले की प्राचीर से दिए गए अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक बार फिर राजनीति के केंद्र में एक बड़ा और संवेदनशील मुद्दा ला खड़ा किया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चिंता जताई है कि भारत की डेमोग्राफी बदलने की साजिश चल रही है. जिसे आप भारत की जनसंख्या संरचना में किए जा रहे धार्मिक बदलाव के तौर पर देख सकते हैं.
डेमोग्राफिक बदलाव को लेकर गंभीर चेतावनी
प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि देश की डेमोग्राफी को बदलने की एक सुनियोजित साजिश चल रही है, और यह केवल एक सामाजिक चुनौती नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा बन चुकी है। पीएम मोदी ने आरोप लगाया कि अवैध घुसपैठियों के माध्यम से कुछ शक्तियां भारत की सांस्कृतिक और जनसंख्या संरचना को बिगाड़ने का प्रयास कर रही हैं।
“ये घुसपैठिये न केवल युवाओं का हक छीन रहे हैं, बल्कि हमारी बहन-बेटियों की सुरक्षा और आदिवासियों की ज़मीनों के लिए भी खतरा बन गए हैं। ये सिर्फ अवैध लोग नहीं हैं, ये एक साजिश का हिस्सा हैं।
हाई-पावर डेमोग्राफी मिशन का ऐलान
इस बड़ी समस्या से निपटने के लिए प्रधानमंत्री ने एक नए सरकारी अभियान की घोषणा की — हाई पावर डेमोग्राफी मिशन। इस मिशन के तहत उन क्षेत्रों की पहचान की जाएगी जहां जनसंख्या असंतुलन तेजी से बढ़ रहा है, और वहां प्रशासनिक, कानूनी व सामाजिक स्तर पर कदम उठाए जाएंगे।
यह मिशन केंद्र और राज्यों के समन्वय से संचालित होगा, और इसका मकसद है अवैध घुसपैठ, धार्मिक कट्टरता, और जनसंख्या असंतुलन जैसी समस्याओं का समाधान।
विपक्ष ने बनाया मुद्दा और SIR का विवाद
पीएम मोदी के भाषण के बाद विपक्षी दलों ने इसे मोदी के इस मुद्दे को ध्रुवीकरण की राजनीति बताया, जबकि कई सामाजिक संगठनों ने प्रधानमंत्री की चिंता को जायज ठहराया है। विपक्ष की ओर से खासकर SIR (Special Infiltration Regions) योजना को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं, जिसका ज़िक्र हाल ही में गृह मंत्रालय की आंतरिक रिपोर्ट में भी आया है।
कुछ विपक्षी नेताओं का कहना है कि इस मुद्दे को चुनावी फायदा उठाने के लिए उछाला जा रहा है, जबकि सरकार इसे “राष्ट्रीय अस्तित्व का सवाल” बता रही है.
मोदी की रणनीति: राष्ट्रवाद और जनसंख्या नीति का मेल
यह पहला मौका नहीं है जब प्रधानमंत्री मोदी ने डेमोग्राफिक असंतुलन को सार्वजनिक रूप से उठाया हो, लेकिन इस बार इसकी गंभीरता और सरकारी स्तर पर कार्रवाई की घोषणा ने इसे नया मुद्दा बना दिया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि 2029 तक आने वाले विधानसभा चुनावों जैसे बिहार, असम, केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड के चुनाव और लोकसभा चुनाव से पहले यह मुद्दा सरकार की रणनीति का अहम हिस्सा बन सकता है — खासकर उन राज्यों में जहां घुसपैठ और जनसंख्या परिवर्तन के आरोप लंबे समय से लगते रहे हैं (जैसे असम, बंगाल, केरल, बिहार आदि)
डेमोग्राफी वॉर की शुरुआत?
प्रधानमंत्री मोदी के इस भाषण के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि सरकार अब जनसंख्या संतुलन के मुद्दे को लेकर कड़ा और निर्णायक रुख अपनाने जा रही है। जहां एक ओर इसे सुरक्षा और सांस्कृतिक अस्मिता का सवाल बताया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर यह भारतीय राजनीति में एक नए बहस की शुरुआत भी बन सकती है — जिसे अब लोग “डेमोग्राफी वॉर” कह रहे हैं।
विपक्ष अभी इस नैरेटिव का ठोस जवाब खोजने में लगा है, तो उधर पीएम मोदी ने साफ संकेत दे दिए हैं कि वो अब चुप नहीं बैठने वाले.
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