बंग्लादेश तख्तापलट – भारत का संकट
लेखक - योगेश मोहन ( वरिष्ठ पत्रकार और आईआईएमटी यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति )
यत् कृतं स्याच्छुभं कर्मं पापं वा यदि वाश्नुते।
तस्माच्छुभानि कर्माणि कुर्याद् वा बुद्धिकर्भिः।।
हिंदी अर्थ – मनुष्य जो भी कर्म करता है, उनका फल उसे भोगना पड़ता है। इसलिए सभी मनुष्यों को बुद्धि, मन तथा शरीर से सदैव अच्छे कर्म करने चाहिए
उपरोक्त कथन, बंग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना पर सत्य सिद्ध हो रहा है। उनके राजनेतिक जीवन के अतीत पर यदि दृष्टिपात करें तो बंग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान की पुत्री, शेख हसीना वर्ष 2009 में बंग्लादेश की प्रधानमंत्री बन गईं थी। यद्यपि प्रारम्भिक समय में जनता ने उन्हें अपना भरपूर समर्थन दिया था, उसी अपार समर्थन के अहंकार में वे एक लोकप्रिय नेता के स्थान पर तानाशाह नेता के रूप में परिवर्तित होती चली गईं। उनकी विगत वर्ष की जीत के पश्चात वहाँ के छात्रों ने उनपर आरोप लगाया कि वर्ष 2023 के आम चुनावों में उन्होंने लोकतंत्र के सारे नियमों को विस्मृत कर, चुनावों में विजयश्री प्राप्त की। इसके लिए उन्होंने न्यायालयों का राजनीतिकरण किया तथा विपक्षी नेताओं को जेलों में पहुँचा दिया, उनके ऊपर कठोर असंवैधानिक कार्रवाई भी कराई, उन्हें न केवल चुनावी प्रक्रिया में भाग लेने से वंचित किया अपितु व्यापक स्तर पर भ्रष्टाचार करके, केन्द्रीय संस्थाओं और चुनाव आयोग से साठ-गांठ करके येन-केन-प्रकारेण 300 सीटों में से 225 सीटे प्राप्त कर हसीना ने अपनी सरकार बना ली।
बंग्लादेश की साधारण जनता, जिनमें विशेष रूप से विद्यार्थीवर्ग उनकी राजनीतिक शैली से बहुत अधिक आहत थे और उनके अर्न्तमन में प्रधानमंत्री शेख हसीना के प्रति विरोध की ज्वाला धधक रही थी, जिसको अपने दंभ के कारण शेख हसीना समय रहते समझने में असमर्थ रहीं। जब वहाँ के युवाओं का क्रोध अपनी चरम सीमा पर पहुँचकर विस्फुटित हुआ तो वहाँ की सेना और सुरक्षाबल भी उन्हें सम्भालने में नाकाम हो गए। विद्रोहियों ने शेख हसीना के महल के ऊपर हमला कर दिया और वहाँ की सेना ने शेख हसीना को किसी प्रकार से सुरक्षा देते हुए भारत पहुँचा दिया।
शेख हसीना की पार्टी आवामी लीग को, वहाँ के हिन्दुओं का पूर्ण समर्थन प्राप्त था, इसी कारण छात्रों ने हसीना द्वारा किये गए अलोकतांत्रिक कृत्यों में हिन्दुओं के समर्थन को देशद्रोह समझकर, वहाँ के हिन्दु प्रतिष्ठानों और मंदिरों पर हमला करके अत्यधिक क्षति पहुँचाई। बंग्लादेश में हिन्दुओं का व्यापार अत्यधिक वृहद स्तर पर फैला हुआ है जोकि आज सम्पूर्ण रूप से ठप पड़ गया है। वहाँ की नई सरकार का गठन हो रहा है, नवनियुक्त प्रधानमंत्री नोबल पुरस्कार से सम्मानित मोहम्मद युनुस है। यह सरकार, भारत के प्रति कैसी नीति अपनाएगी, और जनता का आवामी लीग के प्रति क्रोध कब शांत होगा, यह भविष्य के गर्त में निहित है।
बंग्लादेश में सत्ता परिवर्तन होने के पश्चात भारत के लिए अत्यंत चिंताजनक स्थिति उत्पन्न हो गई है। यदि भारत के समस्त पड़ौसी देशों की स्थिति का आंकलन किया जाए तो बंग्लादेश की सरकार ही भारत की समर्थक सरकार थी। श्रीलंका में चीन ने अपना बंदरगाह बना लिया है, पाकिस्तान हमारा पूर्व से ही विरोधी राष्ट्र है, अफगानिस्तान में चीन ने विगत कुछ वर्षों में अपना प्रभाव स्थापित कर दिया है, नेपाल की वर्तमान ओली सरकार भी चीन की समर्थक है, मंयामार में भी चीन ने अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया है अर्थात् वर्तमान समय में भारत चहुँ ओर से शत्रुओं से घिर गया है और ये स्थिति भविष्य में भारत के लिए अत्यधिक कष्टदायी हो सकती है।
भारत को अपनी विदेश नीति पर पुनः गम्भीरता से विचार करके उसमें बदलाव लाना होगा। और यदि इस स्थिति पर हमने गम्भीरता से निर्णय नहीं लिया तो निकट भविष्य में भारत को इसके क्या दुष्परिणाम सहन करने होंगे, यह आज वर्णित करना अत्यधिक कठिन है।

योगेश मोहन
( वरिष्ठ पत्रकार और आईआईएमटी यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति )
 
			 
											