Mahakumbh 2025 : अघोर पंथ की शुरुआत किसने की… और कितने सालों में पूरी होती है इनकी साधना ? यहां जानें सब कुछ
Aghor sect : महाकुंभ के आरंभ के साथ ही प्रयागराज में साधु-संतों का जमावड़ा लग चुका है। इस विशाल आयोजन में नागा साधु और....
Aghor sect : महाकुंभ के आरंभ के साथ ही प्रयागराज में साधु-संतों का जमावड़ा लग चुका है। इस विशाल आयोजन में नागा साधु और अघोरी चर्चा के केंद्र बने हुए हैं। जहां नागा साधु योग क्रियाओं में रमे रहते हैं, वहीं अघोरी कपाली साधना करते हैं। दोनों ही शिव भक्त हैं और अपने शरीर पर भस्म धारण करते हैं, जिससे आम लोग उनसे थोड़ा भयभीत रहते हैं।
अघोरियों के बारे में कहा जाता है कि वे श्मशान में रहते हैं और तांत्रिक क्रियाएं करते हैं, जिससे उनकी साधनाएं रहस्यमयी मानी जाती हैं। उनका स्वरूप भी डरावना होता है। हालांकि, अघोर विद्या डरावनी नहीं होती। ‘अघोर’ का अर्थ है ‘जो घोर न हो’, यानी डरावना न हो। अघोरी बनने की पहली शर्त है कि अपने मन से घृणा को समाप्त करना। माना जाता है कि अघोर विद्या व्यक्ति को सहज और सरल बनाती है।
अघोर पंथ की शुरुआत किसने की ?
अघोर पंथ एक रहस्यमयी साधना पद्धति है, जिसकी अपनी विधियां और परंपराएं हैं। इस पंथ के साधक अघोरी कहलाते हैं। अघोरी किसी भी प्रकार के खान-पान में परहेज नहीं करते। कहा जाता है कि अघोरी, गौमांस को छोड़कर बाकी सभी प्रकार के मांस का सेवन करते हैं। अघोर पंथ की स्थापना भगवान शिव ने स्वयं की थी। उन्होंने भगवान दत्तात्रेय के रूप में अवतार लेकर इस पंथ की शुरुआत की। दत्तात्रेय को ब्रह्मा, विष्णु और महेश के संयुक्त अंश के रूप में जाना जाता है।
अघोरी साधना के अनोखे पहलू
अघोरी साधक नरमुंडों की माला धारण करते हैं और नरमुंडों का पात्र के रूप में उपयोग करते हैं। वे चिता की भस्म से अपने शरीर को ढकते हैं और चिता की आग पर भोजन बनाते हैं। काशी को अघोर साधना का प्रमुख केंद्र माना जाता है, क्योंकि यह नगर स्वयं भगवान शिव द्वारा स्थापित किया गया था।
अघोरी बनने में कितना समय लगता है ?
अघोरी बनना अत्यंत कठिन साधना है। इसके लिए साधक को तीन प्रकार की दीक्षा लेनी होती है – श्मशान साधना, शव साधना और शिव साधना। इन साधनाओं को पूरा करने में कई साल लग जाते हैं। अघोर पंथ में साधक को गुरु की सेवा कम से कम तीन साल तक करनी होती है। यदि गुरु शिष्य से संतुष्ट नहीं होता, तो यह सेवा आजीवन भी चल सकती है।