Festival of lights : आत्मा का दीपोत्सव
Festival of lights : आत्मा का दीपोत्सव हे मानव! रावण केवल सोने का लंका-पति नहीं था, वह तेरे भीतर पलने वाला अहंकार है। वह तेरी वाणी का कठोर शब्द है, तेरे मन का विकार है, स्वार्थ और मोह का जाल है। राम बाहर नहीं, तेरे अंतर्मन के प्रकाश में हैं। राम वह धैर्य हैं, क्रोध … Continue reading Festival of lights : आत्मा का दीपोत्सव
Copy and paste this URL into your WordPress site to embed
Copy and paste this code into your site to embed