Haryana IPS Suicide Case- एक अफसर की चुप्पी, कई सवालों की गूंज
Haryana IPS Suicide Case : 7 अक्टूबर 2025 को हरियाणा पुलिस सेवा के वरिष्ठ अधिकारी वाई पूरन कुमार की आत्महत्या की खबर जैसे ही आई, पूरे पुलिस महकमे और प्रशासन में भूचाल आ गया. एक ऐसे अधिकारी, जिसने दशकों तक कानून व्यवस्था संभाली, उसने खुद ही जीवन का अंत क्यों चुना? यह सिर्फ एक मौत नहीं, बल्कि उस व्यवस्था पर सवाल है जो खुद को अनुशासन और सेवा की मिसाल कहती है.
आत्महत्या या सिस्टम की हत्या?
पूरन कुमार का शव उनके चंडीगढ़ स्थित आवास के साउंडप्रूफ बेसमेंट से मिला. शरीर पर गोली के निशान थे और पास में मिला 8 पन्नों का सुसाइड नोट, जिसमें उन्होंने कई वरिष्ठ अधिकारियों पर मानसिक उत्पीड़न, जातिगत भेदभाव और योजनाबद्ध प्रताड़ना का आरोप लगाया.
उनकी पत्नी, जो स्वयं एक IAS अधिकारी हैं, ने 13 वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ FIR दर्ज कराई, जिनमें हरियाणा के मौजूदा DGP भी शामिल हैं.

एक अधिकारी की लड़ाई
आईपीएस पूरन कुमार का करियर बेदाग रहा. उन्होंने कई संवेदनशील जिलों में कानून व्यवस्था संभाली, आतंकवाद विरोधी कार्रवाइयों में योगदान दिया और समाज में पुलिस की सकारात्मक छवि बनाने में प्रयासरत रहे. लेकिन जैसे-जैसे वे प्रमोशन की ओर बढ़े, सिस्टम के अंदर की राजनीति और जातिवाद ने उनका रास्ता रोका.
सुसाइड नोट में लिखा गया है कि उन्हें बार-बार अपमानित किया गया, मीटिंग्स में जानबूझकर नजरअंदाज किया गया और गलत आरोपों में फंसाने की धमकियां दी गईं.
FIR के बाद बढ़ता दबाव
आईएएस अमनीत पी. कुमार ने साफ कहा कि जब तक सभी दोषियों को गिरफ्तार नहीं किया जाता, वे अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं करेंगी। ये सिर्फ एक पत्नी की भावनात्मक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि पूरे तंत्र पर भरोसा टूटने का प्रतीक है.
हालांकि FIR दर्ज हो चुकी है, लेकिन जिन अधिकारियों पर आरोप हैं वे सत्ता और व्यवस्था दोनों के केंद्र में हैं. ऐसे में निष्पक्ष जांच की उम्मीद करना, एक कठिन लेकिन ज़रूरी मांग बन गई है.
जातिवाद बनाम कार्य संस्कृति
पूरन कुमार दलित समुदाय से आते थे. उन्होंने अपने करियर में कई बार जातिगत टिप्पणियों और भेदभाव की शिकायत की थी, लेकिन ज्यादातर बार उनकी आवाज़ अनसुनी रही.
सवाल यह नहीं कि एक आईपीएस अधिकारी दलित था. सवाल यह है कि क्या हमारी प्रशासनिक व्यवस्था आज भी जाति से ऊपर नहीं उठ सकी है?
मुख्यमंत्री का हस्तक्षेप और जनता की उम्मीद
हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने पीड़ित परिवार से मिलकर निष्पक्ष जांच का आश्वासन दिया है. यह एक सकारात्मक कदम हो सकता है, लेकिन जब जांच उन्हीं अफसरों के अधीन होगी जिनपर आरोप हैं, तब निष्पक्षता की उम्मीद खुद संदेह में पड़ जाती है.
समाज के लिए सबक
इस घटना से हम सभी को कुछ गंभीर सबक मिलते हैं.
- मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना जरूरी है, खासकर उन लोगों के लिए जो लगातार दबाव में रहते हैं
- संस्थागत भेदभाव, चाहे वह जाति आधारित हो या पदानुक्रम आधारित- उसे अनदेखा करना, भविष्य में और बड़े संकट को जन्म देता है
- शिकायत की प्रक्रिया को इतना सरल और निष्पक्ष होना चाहिए कि एक अधिकारी को आत्महत्या करने जैसा निर्णय न लेना पड़े.
वाई पूरन कुमार की मौत सिर्फ एक इंसान का अंत नहीं है, यह एक ऐसी व्यवस्था का आइना है जो बाहर से तो मजबूत दिखती है लेकिन भीतर से दरक रही है. यह घटना तब तक शांत नहीं होगी, जब तक सच्चाई सामने न आए और न्याय न हो.
और अगर एक वरिष्ठ IPS अधिकारी को भी न्याय के लिए अपनी जान देनी पड़े. तो सोचिए, एक आम नागरिक कितनी आवाज़ें लगाता होगा और कितनी बार अनसुना किया जाता होगा.
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