Mahakumbh : प्रयागराज के महाकुंभ में 13 वर्षीय लड़की द्वारा लिया गया संन्यास महज छह दिनों में ही समाप्त हो गया, जिससे धार्मिक जगत में हलचल मच गई। इस घटना के बाद दीक्षा देने वाले महंत कौशल गिरि को जूना अखाड़े से सात साल के लिए निष्कासित कर दिया गया है। उन पर नाबालिग को अनुचित तरीके से शिष्य बनाने का आरोप लगा है।
अखाड़े का निर्णय
श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़ा के संरक्षक हरि गिरि महाराज ने स्पष्ट किया कि अखाड़े की परंपरा में नाबालिग को संन्यास दिलाने का कोई नियम नहीं है। इस मामले को लेकर अखाड़े की सभा ने बैठक कर सर्वसम्मति से महंत कौशल गिरि पर कार्रवाई का निर्णय लिया।
कैसे हुआ मामला सुर्खियों में ?
आगरा की रहने वाली 13 वर्षीय राखी ने 5 दिसंबर को अपने परिवार के साथ महाकुंभ में पहुंचकर संन्यास लेने का फैसला किया। नागा संन्यासियों को देखकर उसने घर लौटने से इनकार कर दिया। परिवार ने उसकी जिद को देखते हुए उसे महंत कौशल गिरि को सौंप दिया। इसके बाद संगम स्नान के साथ राखी को संन्यास दिलाया गया और उसका नाम बदलकर गौरी गिरि महारानी रखा गया।
यह मामला तब विवादों में आ गया, जब यह सामने आया कि 19 जनवरी को राखी का पिंडदान होना था, लेकिन उससे पहले ही अखाड़े की सभा ने कार्रवाई कर दी। पिंडदान प्रक्रिया संन्यासी बनने की एक महत्वपूर्ण रस्म मानी जाती है।
राखी का परिवार और बैकग्राउंड
राखी के पिता, संदीप उर्फ दिनेश सिंह धाकरे, आगरा में पेठा कारोबारी हैं और उनका परिवार लंबे समय से महंत कौशल गिरि के संपर्क में था। राखी और उसकी छोटी बहन निक्की आगरा के स्प्रिंगफील्ड इंटर कॉलेज में पढ़ती हैं।
अखाड़े ने इस मामले पर स्पष्ट रुख अपनाते हुए कहा कि नाबालिग को संन्यास दिलाना उनकी परंपरा के खिलाफ है। घटना के बाद जूना अखाड़ा ने महंत कौशल गिरि को सात साल के लिए निष्कासित कर दिया और मामले को लेकर गंभीरता दिखाई।
यह घटना न केवल धार्मिक नियमों के उल्लंघन को उजागर करती है, बल्कि कम उम्र में संन्यास और उससे जुड़े सामाजिक व कानूनी पहलुओं पर भी सवाल खड़े करती है।