Dev Diwali : काशी (वाराणसी) के पवित्र घाटों पर कार्तिक पूर्णिमा की रात को देव दीपावली का भव्य आयोजन होता है, जिसे देवताओं की दीपावली के रूप में भी जाना जाता है। यह पर्व हर साल दीपावली के 15 दिन बाद मनाया जाता है और इस दिन विशेष रूप से भगवान शिव, विष्णु और अन्य देवताओं की पूजा होती है। मान्यता है कि इस दिन देवता स्वर्गलोक से धरती पर उतरकर काशी के घाटों पर दीप जलाने आते हैं, जिससे संपूर्ण वातावरण दिव्य आभा से भर उठता है।
देव दीपावली की पौराणिक मान्यता
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, त्रिपुरासुर नामक असुर का वध भगवान शिव ने इसी दिन किया था, जिसके उपलक्ष्य में देवताओं ने दीप प्रज्वलित कर भगवान शिव की आराधना की थी। इसे देवताओं की दीपावली के रूप में मनाया जाता है, और इसीलिए इसे ‘देव दीपावली’ नाम दिया गया। यह पर्व भगवान शिव के त्रिपुरासुर पर विजय और अधर्म पर धर्म की जीत का प्रतीक है।
घाटों पर दीयों की अद्भुत सजावट
देव दीपावली के अवसर पर वाराणसी के दशाश्वमेध घाट, अस्सी घाट और अन्य प्रमुख घाटों पर लाखों दीयों से सजावट की जाती है। घाटों पर लगभग 11 लाख दीये जलाए जाते हैं, जिससे पूरे घाट का नजारा अलौकिक और अद्वितीय होता है। हजारों श्रद्धालु घाटों पर इकट्ठा होकर दीप जलाते हैं और आरती में शामिल होते हैं। जैसे ही सूर्य अस्त होता है, घाटों पर दीप जलाने का क्रम शुरू हो जाता है, जिससे पूरी काशी एक दिव्य प्रकाश से आलोकित हो उठती है।
देव दीपावली पर विशेष अनुष्ठान
इस दिन श्रद्धालु गंगा स्नान, दान और दीपदान का विशेष महत्व मानते हैं। काशी के विभिन्न घाटों पर गंगा आरती का आयोजन होता है, जिसमें श्रद्धालु बड़ी संख्या में शामिल होते हैं। इसके साथ ही, घाटों पर सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है, जिसमें गंगा महिमा, शिव भक्ति और सांस्कृतिक प्रस्तुतियां भी होती हैं।
आकर्षण का केंद्र बनती है देव दीपावली
देव दीपावली के अवसर पर वाराणसी की सुंदरता देखने दूर-दूर से लोग आते हैं। दीपों की झिलमिलाहट और घाटों पर आरती का दृश्य किसी स्वप्निल अनुभव से कम नहीं होता। इस पर्व में शामिल होकर लोगों को एक अद्भुत आध्यात्मिक और सांस्कृतिक अनुभव मिलता है, जो उन्हें देवताओं के आशीर्वाद से परिपूर्ण महसूस कराता है।