Toxic Cough Syrup India : मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में कथित तौर पर एक जहरीली कफ सिरप पीने से कम से कम 11 बच्चों की मौत के बाद पूरे देश में हड़कंप मच गया है। मौतों की वजह एक दवा में पाए गए घातक रसायन को माना जा रहा है। इस मामले में एक डॉक्टर को गिरफ्तार किया गया है, वहीं उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान समेत कई राज्यों ने संबंधित दवा पर तत्काल रोक लगाते हुए जांच शुरू कर दी है।
क्या है मामला?
सितंबर महीने के अंत में छिंदवाड़ा के परासिया क्षेत्र में बच्चों को बुखार, उल्टी और दस्त की शिकायत हुई। इलाज के दौरान कई बच्चों को एक खास कफ सिरप Coldrif दी गई। लेकिन कुछ ही समय में बच्चों में पेशाब बंद होने और गुर्दे फेल होने जैसे लक्षण सामने आए। अब तक 11 बच्चों की मौत हो चुकी है।
तमिलनाडु के ड्रग कंट्रोल विभाग ने इस सिरप की जांच में पाया कि इसमें डायएथिलीन ग्लाइकोल (DEG) नाम का खतरनाक रसायन 48.6% तक मौजूद था, जो सामान्य तौर पर जहरीला माना जाता है और पहले भी दुनिया में दवा त्रासदियों की वजह बन चुका है।
डॉक्टर गिरफ्तार, कंपनी पर केस दर्ज
इस पूरे मामले में जांच के बाद परासिया के एक निजी डॉक्टर प्रवीण सोनी को गिरफ्तार कर लिया गया है. आरोप है कि उन्होंने संदिग्ध कफ सिरप बच्चों को दी थी. स्वास्थ्य विभाग ने डॉक्टर को निलंबित कर दिया है और मामले की गंभीरता को देखते हुए दवा निर्माता कंपनी Sresan Pharmaceuticals के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज की गई है.
प्रशासन ने अब तक 433 बोतलों को जब्त कर लिया है, जिनमें से 222 बोतलें पहले ही बिक चुकी थीं.
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कई राज्यों में अलर्ट, दवा पर रोक
इस घटना के बाद उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु सहित कई राज्यों ने Coldrif सिरप की बिक्री पर तत्काल रोक लगा दी है और फार्मेसियों में स्टॉक की जांच शुरू कर दी गई है। केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को अलर्ट जारी किया है और कहा है कि 2 साल से कम उम्र के बच्चों को कफ सिरप देने से बचें।
महाराष्ट्र सरकार ने भी Coldrif के उस बैच को बैन कर दिया है, जिसकी रिपोर्ट में जहरीले रसायन की पुष्टि हुई है।
केंद्र की जांच में विरोधाभास
हालांकि, एक ओर तमिलनाडु की प्रयोगशाला ने DEG की पुष्टि की है, वहीं केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि उन्हें अब तक किसी भी सैंपल में DEG या EG (Ethylene Glycol) नहीं मिला है। इस विरोधाभास के चलते जांच पर सवाल भी उठने लगे हैं।
केंद्र सरकार ने एक उच्च स्तरीय समिति गठित की है, जिसमें ICMR, CDSCO, AIIMS और अन्य वैज्ञानिक संस्थाएं शामिल हैं. ये टीम प्रभावित क्षेत्रों से पानी, दवा और मिट्टी के नमूने लेकर विस्तृत जांच कर रही है।
राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया
मुख्यमंत्री मोहन यादव ने बच्चों की मौत को “अत्यंत दुखद” बताया और कहा कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। वहीं, विपक्षी दलों ने सरकार की दवा नियंत्रण प्रणाली की विफलता पर सवाल उठाते हुए मुआवजा और पारदर्शी जांच की मांग की है।
बच्चों के परिवारों ने सरकारी लापरवाही और समय पर कार्रवाई न होने को लेकर रोष व्यक्त किया है।
क्या है DEG और क्यों है यह खतरनाक?
डायएथिलीन ग्लाइकोल (DEG) एक औद्योगिक रसायन है, जिसका उपयोग आमतौर पर एंटीफ्रीज़ और सॉल्वेंट के रूप में किया जाता है। यह मानव शरीर के लिए अत्यंत विषैला होता है। इसे गलती से या मिलावट के तौर पर दवाओं में मिलाया जाता है, जिससे गुर्दे फेल होने की संभावना बढ़ जाती है। भारत सहित कई देशों में पहले भी DEG से जुड़ी मौतें सामने आ चुकी हैं।
अगले कदम: सुधार की ज़रूरत
इस घटना ने एक बार फिर भारतीय दवा नियामक प्रणाली की कमजोरियों को उजागर किया है। विशेषज्ञों का कहना है कि:
- दवा निर्माण में गुणवत्ता नियंत्रण को और कठोर बनाने की आवश्यकता है।
- बाल रोगियों के लिए उपयोग की जाने वाली दवाओं पर विशेष निगरानी हो।
- दोषियों के खिलाफ शीघ्र कानूनी कार्रवाई सुनिश्चित की जाए।
- मृतकों के परिवारों को मुआवजा और मानसिक समर्थन प्रदान किया जाए।
छिंदवाड़ा की यह घटना सिर्फ एक स्वास्थ्य संकट नहीं, बल्कि एक सिस्टम फेलियर का संकेत है। बच्चों की मौत की जिम्मेदारी केवल एक डॉक्टर या कंपनी तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि यह पूरे चिकित्सा और दवा निगरानी ढांचे के लिए चेतावनी है। इस हादसे को अगर समय रहते सीखा न गया, तो आगे और बड़ी त्रासदियाँ जन्म ले सकती हैं।
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