Floods News : उत्तर भारत में इस समय सिर्फ एक ही नज़ारा दिखाई दे रहा है — पानी, बर्बादी और बेसहारा लोग। पंजाब से लेकर राजस्थान तक भारी बारिश और बाढ़ ने जनजीवन को बुरी तरह अस्त-व्यस्त कर दिया है। राज्य सरकारें चौकन्नी हैं, राहत एजेंसियां हरकत में हैं, लेकिन आसमान से गिरती आफ़त अभी थमने का नाम नहीं ले रही।
पंजाब: तीन दशक बाद सबसे भयावह बाढ़
पंजाब को पिछले तीन दशकों में ऐसी तबाही का सामना नहीं करना पड़ा। रावी, ब्यास और सतलुज नदियों के उफान ने 23 में से 18 जिलों को बुरी तरह प्रभावित किया है।
- 46 लोगों की मौत, दर्जनों अब भी लापता।
- करीब 4 लाख लोग प्रभावित, जिनमें बड़ी संख्या किसानों की है।
- 1.75 लाख हेक्टेयर में खड़ी फसलें तबाह — धान, कपास, गन्ना और सब्जियां पूरी तरह नष्ट।
- 200 से ज्यादा राहत शिविर, लेकिन ज़रूरत इससे कहीं अधिक।
मोगा, कपूरथला, पठानकोट, रोपड़ और फतेहगढ़ साहिब जैसे जिले सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए हैं। कुछ गांवों में पानी का स्तर 8 फीट तक पहुंच गया है। कई गांव अभी भी कटे हुए हैं, जहां सिर्फ नाव या हेलिकॉप्टर से ही पहुंचा जा सकता है।
राजनीतिक गर्मी: मदद नहीं, आरोपों की बाढ़
पंजाब सरकार ने केंद्र पर सीधा आरोप लगाया है कि “फंड नहीं आए, मदद अधूरी रही।” वित्त मंत्री हरपाल चीमा ने कहा:
“जब हम 1988 की तरह के हालात झेल रहे हैं, तब दिल्ली सिर्फ प्रेस विज्ञप्तियां भेज रही है।”
इधर किसान संगठनों ने न्यायिक जांच की मांग की है — क्या यह बाढ़ प्राकृतिक है या फिर मानवजनित चूक का नतीजा?
राजस्थान: रेगिस्तान में जलप्रलय
राजस्थान, जिसे आमतौर पर सूखे और गर्म हवाओं के लिए जाना जाता है, अब बाढ़ से जूझ रहा है। खासकर पश्चिमी जिलों में हालात चिंताजनक हैं:
- बाड़मेर, जैसलमेर, जालोर, पाली और सिरोही में भारी बारिश का कहर।
- कई जगहों पर सड़कें बह गईं, गांवों का संपर्क टूटा।
- माही, जवाई, बसलपुर डैम के गेट खोलने पड़े, जिससे और बाढ़ का खतरा बढ़ गया।
IMD (भारतीय मौसम विभाग) ने 7 सितंबर से 9 सितंबर तक “रेड अलर्ट” जारी किया है — तेज बारिश, बिजली गिरने और 50-60 किमी/घंटा की रफ्तार वाली हवाओं की चेतावनी दी गई है।
राहत या सिर्फ रस्मअदायगी?
जहां एक ओर NDRF और SDRF की टीमें सक्रिय हैं, वहीं दूसरी ओर ज़मीन पर हकीकत कुछ और कहती है।
- कई गांवों में राहत सामग्री “ओवरसप्लाई” होने लगी है, जबकि कई स्थान अब भी खाली हाथ हैं।
- पीने का पानी, दवा, बच्चों के लिए दूध और बुज़ुर्गों के लिए प्राथमिक इलाज — ये सबसे बड़ी ज़रूरतें हैं, जो अभी भी पूरी नहीं हो पाईं।
मौसम का मिज़ाज सुधरने वाला नहीं
विशेषज्ञों का मानना है कि इस बाढ़ की एक बड़ी वजह है अचानक बनी निम्न दबाव की प्रणाली जो बंगाल की खाड़ी से मध्य भारत होते हुए अब राजस्थान और पंजाब की ओर बढ़ रही है। IMD के मुताबिक:
“अगले 72 घंटे उत्तर-पश्चिम भारत के लिए बेहद संवेदनशील हैं।”
सरकारों की अगली परीक्षा
राहत अब सिर्फ नावें चलाने से नहीं मिलेगी। आने वाले हफ्तों में सबसे ज़रूरी होगा:
- फसलों का मुआवजा, जिसमें पारदर्शिता और तुरंत भुगतान हो।
- फसल बीमा योजना का सही कार्यान्वयन।
- दीर्घकालिक पुनर्वास योजना — क्योंकि सिर्फ राशन देने से जिंदगी नहीं चलती।
जनता की आवाज़: “हमें बस बचा लो, वोट बाद में ले लेना”
सिर से छत जा चुकी है, खेतों से फसल, और आंखों से नींद — अब लोग सिर्फ राहत नहीं, इज़्ज़त और सुरक्षा की उम्मीद कर रहे हैं।
बातचीत के दौरान बाढ़ पीड़ित लोगों ने जर्नलिस्ट इंडिया से कहा
“बाढ़ हर साल आती थी, लेकिन इस बार पानी के साथ भरोसा भी बह गया।”
यह सिर्फ बाढ़ नहीं, एक चेतावनी है
जलवायु परिवर्तन, प्रशासनिक लापरवाही और संसाधनों की कमी — जब ये तीन मिलते हैं, तो नतीजा यही होता है। पंजाब और राजस्थान का संकट एक बड़ी चेतावनी है, जिसे सिर्फ राजनीतिक बहस नहीं, सख्त नीति और संवेदनशीलता से ही सुलझाया जा सकता है।