Election Commission : चुनाव आयोग ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा लगाए गए ‘वोट चोरी’ के आरोपों को “गलत, भ्रामक और लोकतंत्र के लिए खतरनाक” बताया है। आयोग ने दिल्ली में प्रेस कॉफ्रेंस कर कहा कि मतदाता सूची की तैयारी एक पारदर्शी और कानूनी प्रक्रिया के तहत होती है, जिसमें सभी दलों को समान अवसर दिया जाता है।
क्या है विवाद का पूरा मामला?
राहुल गांधी ने हाल ही में आरोप लगाया कि बिहार, कर्नाटक और अन्य राज्यों में मतदाता सूचियों में भारी गड़बड़ियां हैं। राहुल गांधी ने दावा किया कि लाखों फर्जी वोटर जोड़े गए हैं, जिससे चुनाव की निष्पक्षता पर प्रश्न उठते हैं।
इन आरोपों के बीच उन्होंने “वोट अधिकार यात्रा” की शुरुआत की, जो 16 दिनों में 20 से अधिक जिलों से होकर गुज़रेगी। यह यात्रा कथित तौर पर उन लोगों के लिए है जिन्हें बिना सूचना के वोटर लिस्ट से हटाया गया।
राहुल गांधी के आरोपों पर चुनाव आयोग का जवाब
चुनाव आयोग की प्रेस कॉन्फ्रेंस में मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) ने राहुल गांधी के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा
- “हम सभी दलों के लिए समान हैं। हमारे सामने कांग्रेस, भाजपा या कोई और पार्टी नहीं होती—सिर्फ मतदाता होते हैं।”
- आयोग ने स्पष्ट किया कि वोटर लिस्ट की समीक्षा एक निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार होती है, जिसमें क्लेम्स एंड ऑब्जेक्शन्स (आपत्तियों और दावों) का समय दिया जाता है।
- राहुल गांधी से कहा गया कि यदि उनके पास कोई ठोस प्रमाण है, तो वह नियम 20(3)(b) के तहत हलफनामे के साथ सबूत सौंपें।
फैक्ट चेक और वीडियो विवाद
चुनाव आयोग ने कांग्रेस समर्थकों द्वारा वायरल किए गए एक वीडियो को भी “भ्रामक और एआई जनित” बताया। उन्होंने कहा कि यह बिहार के मतदाताओं को गुमराह करने का प्रयास था और यह चुनावी प्रक्रिया की साख को नुकसान पहुंचा सकता है।
फर्जी वोटर की बात के बाद कैसे बदला माहौल
यह विवाद ऐसे समय में खड़ा हुआ है जब बिहार विधानसभा चुनावों की तैयारियां ज़ोरों पर हैं और राहुल गांधी विपक्ष की ओर से मतदाता अधिकारों की लड़ाई का चेहरा बने हुए हैं। कांग्रेस का आरोप है कि सत्ताधारी दल ने जानबूझकर कुछ तबकों के वोटर नाम हटा दिए ताकि उनके वोट बैंक को कमजोर किया जा सके। वहीं भाजपा ने इन आरोपों को “डर की राजनीति” बताया और कहा कि विपक्ष हार से पहले बहाना ढूंढ रहा है।
चुनाव आयोग ने प्रेस कॉफ्रेंस के मायने क्या ?
चुनाव आयोग की प्रेस कॉन्फ्रेंस ने यह स्पष्ट कर दिया कि वह न केवल सभी राजनीतिक दलों के लिए निष्पक्ष है, बल्कि मतदाता सूची को तैयार करने की प्रक्रिया पूरी तरह से कानूनी और सार्वजनिक है। आयोग ने सभी राजनीतिक दलों से आग्रह किया कि वे जनविश्वास को बिगाड़ने वाले “भ्रामक बयानों” से बचें और यदि कोई आपत्ति है तो उसे दस्तावेज़ी साक्ष्यों के साथ प्रस्तुत करें।
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