2008 Malegaon Blast : महाराष्ट्र के नासिक ज़िले के मालेगांव शहर में 29 सितंबर 2008 को हुए बम धमाके में फैसला आ गया है. इस केस में 17 साल बाद एनआईए विशेष अदालत ( NIA Special Court ) ने इस मामले में आरोपित सभी सात व्यक्तियों को बेक़सूर करार देते हुए बरी कर दिया है। इस फैसले ने एक लंबे समय से चले आ रहे हिंदू आतंकवाद नाम के विवादास्पद केस पर भी विराम लगा दिया है, जिसके बाद अब राजनीति, न्याय व्यवस्था और समाज में गहरी बहस छेड़ी थी.
क्या है 2008 का मालेगाव ब्लास्ट विवाद?
29 सितंबर 2008 की शाम को मालेगांव के भीकू चौक पर एक मोटरसाइकिल में छिपाकर गए विस्फोटक IED में जोरदार धमाका हुआ। इस विस्फोट में 6 लोगों की मौत हो गई और 100 से अधिक घायल हुए थे। यह धमाका मुस्लिम बहुल इलाके में हुआ था, जिसके बाद माहौल तनावपूर्ण हो गया।
इस मामले में किस-किस को बनाया गया था आरोपी?
इस केस की शुरुआती जांच ATS यानी Anti-Terrorism Squad ने की थी, जिसने हिंदुत्व से जुड़े संगठनों के 14 व्यक्तियों को आरोपी बनाया. जिनमें से प्रमुख नाम
.साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर
.लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित
.समीर कुलकर्णी
.रमेश उपाध्याय, अजय रहिरकर, सुधाकर चतुर्वेदी, और सुधाकर द्विवेदी थे
बाद में 2011 में जांच NIA (National Investigation Agency) को सौंपी गई। इनमें से कई को लंबे समय तक जेल में रहना पड़ा, कुछ को 2017 के बाद ज़मानत मिल गई।
इस मामले में NIA कोर्ट ने क्या कहा?
31 जुलाई 2025 को, विशेष NIA अदालत ने सभी सात आरोपियों को प्रयाप्त सबूत नहीं होते हुए बरी कर दिया. कोर्ट ने कहा
.प्रज्ञा सिंह की मोटरसाइकिल धमाके में इस्तेमाल हुई थी, यह साबित नहीं हो सका.
.विस्फोटकों के स्रोत, ट्रांसपोर्ट और फील्ड ऑपरेशन में किसी का सीधा हाथ साबित नहीं हो पाया
.कर्नल पुरोहित पर लगे आरोप साबित नहीं हो पाए
.बाकी आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं मिले कि उन्हें दोषी माना जाय
.गवाहों के बयान समय-दर-समय बदलते रहे, जिससे अभियोजन पक्ष की कहानी कमजोर हुई
.NIA द्वारा कई पुराने सबूत खारिज किए गए, जो ATS द्वारा जमा किए गए थे
इस पूरे मामले में सामाजिक और राजनीतिक प्रतिक्रियाएं क्या थी.
.इस पूरे मामले में राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाओं में मतभेद देखने को मिला.
.हिंदू संगठनों ने इस पूरे केस का विरोध किया और अब फैसले का स्वागत किया
.विपक्षी दलों ने इस फैसले को जांच एजेंसियों की विफलता करार दिया तो वही सत्ता पक्ष ने फैसले को न्याय की जीत बताया.
.पीड़ित परिवारों ने गहरी नाराजगी जताई. उनका कहना है कि हमने अपनों को खोया
2008 मालेगांव धमाके के आरोपी अब कानूनी रूप से निर्दोष हैं. लेकिन इस केस ने ये सवाल जरूर खड़ा किया है कि आतंकवाद के मामलों में जांच एजेंसियों की भूमिका कितनी निष्पक्ष और सक्षम रही है. साथ ही राजनीतिक दलों ने वोटबैंक के लिए क्या-क्या षड्यंत्र रचते रहे हैं इसकी भी पोल खुल गई है.