Nepal Protest News : नेपाल इन दिनों केवल राजनीतिक संकट से नहीं, बल्कि एक ऐसे आग से गुजर रहा है जिसमें सबकुछ खाक होता जा रहा है. राजधानी काठमांडू की सड़कों पर केवल विद्रोह, नारेबाजी, आगजनी नहीं, बल्कि एक नया अध्याय शुरू हो रहा है. इस नए आंदोलन का असल नेतृत्व कौन करहा है अभी तक इसका भी खुलासा नहीं हुआ है. Zen G आंदोलन के नाम पर नेपाली यूवाओं के कंधे पर बंदूक रखकर आखिर कौन चला रहा है.
ऐसे में अब नेपाल के लिए एक बड़ा संकट ये है कि इतने बड़े आंदोलन के बाद नेपाल की गद्दी पर कौन बैठेगा. इस बार प्रधानमंत्री की कुर्सी केवल संसद के गलियारों से नहीं, बल्कि जनता के बीच से तय हो रही है — खासकर युवाओं के बीच से, जिन्हें अब “Gen Z आंदोलन” कहा जा रहा है।
इस माहौल में सवाल यह नहीं है कि कौन प्रधानमंत्री बनेगा, बल्कि यह है कि नेपाल का अगला प्रधानमंत्री कैसा होगा?
ओली युग का अंत: सत्ता से विदाई, जनता से दूरी
केपी शर्मा ओली, जिनका कभी नाम नेपाली राष्ट्रवाद और राजनीतिक अनुभव के लिए सम्मान से लिया जाता था, अब इतिहास के एक ऐसे अध्याय में बदल चुके हैं जिसे लोग “राजनीतिक अड़ियलपन” और लोकप्रियता से टकराव के रूप में याद रखेंगे। उनके शासनकाल में संसद भंग करना, संवैधानिक संस्थाओं से टकराव, और भ्रष्टाचार के आरोपों ने उनकी छवि को बुरी तरह क्षति पहुँचाई।
उनका इस्तीफ़ा एक औपचारिक प्रक्रिया नहीं थी, बल्कि जनता के दबाव से निकला एक स्वीकारोक्ति थी: कि अब पुरानी राजनीति के लिए कोई जगह नहीं बची है।
भावी प्रधानमंत्री: चेहरे नहीं, चरित्र की माग
अब सवाल उठता है — अगला प्रधानमंत्री कौन?
यहां कुछ संभावित नाम हैं, लेकिन इस बार चेहरा कम, व्यक्तित्व और दृष्टि अधिक मायने रखती है:
- कुलमान घिसिंग — “उम्मीदों का टार्चबियरर”
पूर्व NEA प्रमुख कुलमान घिसिंग ने जिस तरह नेपाल को लोडशेडिंग से निकाला, वह सिर्फ तकनीकी समाधान नहीं था — वह एक आशा की क्रांति थी।
उनका प्रशासनिक अनुभव, साफ-सुथरी छवि और जनता से जुड़ाव उन्हें “संभाव्य टैक्नोक्रेटिक प्रधानमंत्री” बनाता है।
- भ्रष्टाचार से अछूते
- समाधान-केन्द्रित नेतृत्व
- पार्टी राजनीति से परे छवि
लेकिन चुनौती यही है — क्या पारंपरिक राजनीतिक दल उन्हें स्वीकार करेंगे?
- सुशीला कार्की — “न्याय की लौ”
नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश, जिनका नाम आज भी ईमानदारी और निष्पक्षता के लिए लिया जाता है।
जनता, खासकर युवा वर्ग, उन्हें उस “मोरल अथॉरिटी” के रूप में देख रहा है जो गंदी राजनीति की सफाई कर सके।
- कानूनी और नैतिक मजबूती
- सत्ता से दूरी, लेकिन विचारों से गहराई
- महिला नेतृत्व की उम्मीद
परंतु, उनके पास राजनीतिक तंत्र को चलाने का अनुभव सीमित है — क्या वे सत्ता को संभाल पाएगी?
- बलेंद्र शाह (Balen Shah) — “जनता का चेहरा”
एक इंजीनियर, रैपर और अब काठमांडू के मेयर।
बलेंद्र शाह नेताओं की भीड़ में वह आवाज़ हैं, जो संसद के बाहर गूँजती है।
- जनता की सीधी पहुँच
- पारदर्शिता की नीति
- युवाओं की पसंद
हालांकि, उनकी प्रशासनिक भूमिका अभी स्थानीय है — क्या वे राष्ट्रीय जिम्मेदारी निभा पाएँगे?
क्या यह नेपाल का ‘आप’ पल है?
भारत में 2013 में आम आदमी पार्टी (AAP) का उदय एक जन-आंदोलन से हुआ था। क्या नेपाल उसी मोड़ पर खड़ा है?
Gen Z आंदोलन के नारों में सत्ता नहीं, सिस्टम बदलने की बात है
यहां “अगला प्रधानमंत्री” सिर्फ एक पद नहीं, बल्कि एक प्रतीक बनने जा रहा है — नई राजनीति का, नए नेपाल का।
अगला प्रधानमंत्री वही होगा, जो “पद” से बड़ा “दृष्टिकोण” लेकर आएगा
नेपाल आज राजनीतिक शून्यता नहीं, बल्कि संभावनाओं से भरी संक्रमणकाल में है। अगला प्रधानमंत्री कोई हो — कुलमान घिसिंग, सुशीला कार्की, बलेंद्र शाह या कोई सर्वसम्मत चेहरा — उससे जनता को सिर्फ सरकार नहीं, नई दिशा चाहिए। और शायद इतिहास यही लिखेगा “नेपाल का नया प्रधानमंत्री संसद से नहीं, सड़कों से निकला — और जनता के विश्वास की मुहर से ताज पहनाया गया।”
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