Maha Kumbh Stampede : महाकुंभ मेला भारत के प्रमुख धार्मिक आयोजनों में से एक है, जो हर 12 साल में हरिद्वार, प्रयागराज (इलाहाबाद), उज्जैन और नासिक में आयोजित होता है। इस मेले में लाखों लोग एक साथ एकत्रित होते हैं, जो धार्मिक आस्थाओं के चलते गंगा या अन्य पवित्र नदियों में स्नान करते हैं। ऐसे विशाल और भीड़-भाड़ वाले आयोजनों में भगदड़ की घटनाएं कई बार हुई हैं।
महाकुंभ में कब-कब मची भगदड़?
1954, इलाहाबाद कुंभ:
आजादी के बाद पहला कुंभ मेला आयोजित किया गया था. जिसमें बड़ी भगदड़ मची थी। जब हजारों लोग एक साथ स्नान करने के लिए नदी के किनारे इकट्ठा हो रहे थे, तो अचानक अफवाह फैल गई कि पुल टूट रहा है, इस कारण बड़ी संख्या में लोग एक-दूसरे पर गिरने लगे और भगदड़ मच गई, जिसमें लगभग 800 लोगों की नदी में डूबकर मौत हो गई थी.
1986, हरिद्वार कुंभ:
इस कुंभ में मची भगदड़ में कम से कम 200 लोगों की जान चली गई थी. ये अराजकता तब फैली जब उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों और सांसदों के साथ हरिद्वार पहुंचे. जब सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें रोका, तो भीड़ बेकाबू हो गई और भगदड़ मच गई.
2003 नासिक कुंभ:
2003 में महाराष्ट्र के नासिक में हुए कुंभ में मची भगदड़ में दर्जनों लोग मारे गए थे। उस समय हजारों तीर्थयात्री कुंभ मेले के दौरान पवित्र स्नान के लिए गोदावरी नदी पर एकत्र हुए थे, लेकिन भगदड़ मच गई. जिसमें महिलाओं सहित कम से कम 39 लोगों की मौत हो गई, जबकि 100 से अधिक लोग घायल हुए थे.
2013 इलाहाबाद स्टेशन पर भगदड़
10 फरवरी 2013 को कुंभ मेले के दौरान इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर एक फुटब्रिज के ढह गया था, जिससे भगदड़ मची। इस हादसे में 42 लोगों की जान चली गई थी और 45 अन्य घायल हो गए थे।
महाकुंभ के दौरान भगदड़ की घटनाओं के लिए मुख्य कारण हमेशा भीड़ का अत्यधिक दबाव और व्यवस्थाओं की कमी रही है। हालांकि, हर बार प्रशासन और आयोजकों की ओर से सुरक्षा उपायों को बढ़ाने की कोशिश की जाती है, लेकिन इतने विशाल आयोजन में सब कुछ ठीक से नियंत्रित करना एक बड़ी चुनौती होती है।