Hiren Joshi Controversy : अडानी, वोट चोरी, संविधान संशोधन, SIR और अब हिरेन जोशी कांग्रेस कई बार ऐसे मुद्दों पर जोर शोर से हो हल्ला करती रही है लेकिन कभी भी अपने आरोपों पर ठोस सबूत नहीं दे पाई है. ऐसे में जब राजनीतिक मौसम गर्म हो तो आरोप लगाना आम बात है। लेकिन पिछले कुछ समय से कांग्रेस जिस तरह से बिना तथ्यात्मक पुष्टि और अधूरी सूचनाओं के आधार पर बड़े-बड़े दावे कर रही है, उसने कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
पहले मामला उठा अडानी से लेकर SIR (Special Intensive Revision) और “फर्जी वोटरों” तक कांग्रेस आरोप लगाने के सिवा कुछ नहीं कर पाई. कांग्रेस से कई बार सबूत मांगे गए लेकिन वो दे नहीं पाई. अब चर्चा में है हिरेन जोशी का है जिन पर कांग्रेस ने महादेव बेटिंग ऐप और कारोबारी हितों को लेकर गंभीर आरोप दाग दिए हैं. लेकिन क्या इन आरोपों में दम है? या फिर यह भी उसी “राजनीतिक भ्रम-रणनीति” का हिस्सा है, जैसा पहले SIR को लेकर देखा गया?
SIR पर कांग्रेस की बयानबाज़ी, जहां तथ्य पीछे और राजनीति आगे
चुनाव आयोग ने देशभर में मतदाता सूची के सुधार के लिए SIR की घोषणा की जो कि एक नियमित, तकनीकी और प्रशासनिक प्रक्रिया है. कांग्रेस और उनके साथियों ने इसे तुरंत “लाखों वोट काटने की साजिश” बता दिया। लेकिन चुनाव आयोग ने किसी भी तरह के “राजनीतिक हस्तक्षेप” से इंकार किया। आयोग ने कहा कि यह अभ्यास हर कुछ वर्षों में होता है और यह पूरी तरह पारदर्शी है। कांग्रेस द्वारा बताए गए नंबर और आरोप किसी दस्तावेज़ या आधिकारिक रिपोर्ट में नहीं दिखे। यानी आरोप ज्यादा और प्रमाण कम. ऐसे ही अडानी को लेकर भी कई आरोप लगाए गए जिससे अडानी को काफी नुकसान तो झेलना पड़ा लेकिन जब खुलासा हुआ तो पता चला कि वो भी एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा था. ऐसे में अब निशाने पर हिरेन जोशी हैं आरोप वही पैटर्न वाले, सबूत फिर भी गायब. अब कांग्रेस ने PMO के अधिकारी हिरेन जोशी Hiren Joshi पर गंभीर आरोप लगाए हैं. कि उनके महादेव बेटिंग ऐप, कुछ “कारोबारी पार्टनर्स” और विदेशी संबंधों से जुड़े लिंक हैं।
बड़े दावों में कितना दम
कांग्रेस का दावा बहुत बहुत बड़ा है। लेकिन अब तक क्या सामने आया? ऐजेंसियों ने महादेव बेटिंग एप की जांच की और कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के तारों का खुलासा किया लेकिन तब भी हिरेन जोशी का नाम नहीं आया. तब से अभी तक किसी स्वतंत्र जांच एजेंसी की रिपोर्ट में उनका नाम नहीं आया. ED/CBI/पुलिस की किसी चार्जशीट में जोशी का उल्लेख नहीं मिलता. मुख्यधारा मीडिया में भी अब तक कोई ठोस डेटा सामने नहीं आया है. जो दस्तावेज कांग्रेस शेयर कर रही है, उनकी प्रमाणिकता पर भी अब सवाल उठ रहे हैं. यानी आरोपों का “नैरेटिव” है, लेकिन “एविडेंस” नहीं.
ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह कांग्रेस का पुराना राजनीतिक पैटर्न है?
दोनों मामलों में एक समानता साफ दिखती है. बड़ा आरोप बिना ठोस आधार के तुरंत प्रचार चाहे वह SIR पर “लाखों फर्जी वोट” का मुद्दा हो या वोट चोरी और अडानी. हिरेन जोशी पर “कारोबारी साजिश” का दावा कांग्रेस एकदम शुरुआती स्तर की अफवाहों को भी “बड़ी राजनीतिक विस्फोटक कहानी” की तरह पेश कर रही है. एक बात जब पवन खेड़ा प्रेस कांग्रेस कर रहे थे तब वो हिरेन जाशी पर आरोप लगाते हुए कह रहे थे कि ये चर्चाएं मोबाईलों पर चलेंगी. यानी की अगर कांग्रेस कोई आरोप लगाती है तो वो सोशल मीडिया पर जिंदा रहेंगी. मतलब की कांग्रेस आरोप लगाकर आगे निकलना चाहती है और मुद्दे पीछे छूट जाते हैं. जिसे अब जनता में भ्रम फैलाने की कोशिश बतायाजा रहा है. ऐसे में जब तक कोई स्पष्ट तथ्य सामने आता है, तब तक सोशल मीडिया में भ्रम फैल चुका होता है. इसे ही कई राजनीतिक विश्लेषक “नैरेटिव पॉलिटिक्स” कह रहा हैं.
क्या आरोपों का समय हमेशा रणनीतिक होता है ?
पॉलिटिकल पंडित कह रहे हैं कि मुद्दों को राजनीतिक मौसम देखकर उठाया जाता है. चुनाव, संसद, सत्र, राजनीतिक संकट, ताकि इसका अधिकतम प्रचारात्मक लाभ लिया जा सके. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या कांग्रेस खुद जांच चाहती भी है? अगर आरोप इतने गंभीर हैं, तो कांग्रेस को चाहिए कि वह. अदालत में याचिका दाखिल करे जांच एजेंसी को औपचारिक शिकायत दे. सबूत सार्वजनिक करे. लेकिन अभी तक कई मामलों में ऐसा कुछ नहीं हुआ. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि शायद आरोप ज्यादा राजनीतिक और कम तथ्यात्मक हैं.
लोकतंत्र के लिए सबूत आधारित राजनीति जरूरी है
राजनीति में सवाल पूछना गलत नहीं है. लेकिन सवालों को “तथ्य” और “अफवाह” के बीच संतुलित रखना जरूरी है. जब किसी की प्रतिष्ठा या संवैधानिक संस्थाओं का भरोसा दांव पर लगे तब राजनीतिक फायदे के लिए अफवाह फैलाना लोकतांत्रिक विश्वसनीयता पर चोट करता है.
SIR हो या हिरेन जोशी, दोनों मामलों में कांग्रेस के आरोप ज्यादा शोर और कम सबूत वाले दिख रहे हैं. आरोपों को जिस तरह से प्रचारित किया जा रहा है, उससे यही लगता है कि मुद्दों के पीछे तथ्य नहीं, बल्कि राजनीतिक गणित ज्यादा सक्रिय है. जब तक प्रमाण सामने नहीं आते तब तक यह कहना गलत नहीं होगा कि कांग्रेस के नए आरोप भी उसी श्रेणी में आते हैं, जिसे विशेषज्ञ “राजनीतिक भ्रम-रणनीति” कहते हैं.
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