Bihar Election 2025 Voter Data Scam : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 जैसे-जैसे नज़दीक आ रहे हैं, सियासी पारा चढ़ने के साथ ही एक नई और चौंकाने वाली जानकारी सामने आ रही है. जर्नलिस्ट इंडिया ( Journalist India ) की रिसर्च में पाया गया है कि मतदाताओं का निजी डाटा बड़े पैमाने पर खरीदा और बेचा जा रहा है. मोबाइल नंबर, आधार डिटेल, बैंकिंग से जुड़े बेसिक डेटा और सोशल मीडिया पैटर्न तक, सबकुछ चुनावी लाभ के लिए राजनीतिक पार्टियों को उपलब्ध कराया जा रहा है.
डाटा बेचने वालों का जाल
जर्नलिस्ट इंडिया सूत्रों के मुताबिक, डाटा बेचने का ये खेल केवल आईटी कंपनियों या प्राइवेट एजेंसियों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें लोकल स्तर पर छोटे सर्वे ग्रुप्स और डिजिटल मार्केटिंग एजेंसियां भी शामिल हैं. ये एजेंसियां मतदाताओं की पसंद-नापसंद, जातिगत झुकाव, धार्मिक पहचान और यहां तक कि उनकी आर्थिक स्थिति तक का रिकॉर्ड तैयार करके राजनीतिक दलों को पैकेज में बेच रही हैं.
राजनीतिक पार्टियों को क्यों चाहिए ये डाटा?
- बूथ मैनेजमेंट- यह समझने के लिए कि किस क्षेत्र में किस जाति या समुदाय का वर्चस्व है.
- लक्षित प्रचार (Targeted Campaign)- मोबाइल पर एसएमएस, व्हाट्सएप मैसेज और कॉलिंग कैंपेन चलाने के लिए.
- वोट माइक्रो-मैनेजमेंट- ऐसे मतदाताओं की लिस्ट निकालना जो असमंजस में हैं, ताकि उन पर खास फोकस किया जा सके औऱ अपने वोट बैंक में कनवर्ट कर सके.
Bihar Election 2025 : बिहार चुनाव में सोशल मीडिया की भूमिका: बदलती राजनीति की नई तस्वीर
चुनाव आयोग और साइबर सुरक्षा पर सवाल
डाटा का यह खुलेआम कारोबार चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल खड़ा करता है. चुनाव आयोग ने कई बार चेतावनी दी है कि मतदाता डाटा की चोरी और बिक्री गैरकानूनी है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर इसकी रोकथाम लगभग असंभव सी लग रही है. साइबर एक्सपर्ट्स मान रहे हैं कि अगर समय रहते इस पर सख्ती नहीं की गई, तो लोकतंत्र की सबसे अहम नींव “मतदाता की निजता” गंभीर खतरे में पड़ सकती है.
क्या है इसके आगे की चिंता
सामान्य मतदाता को शायद इस बात का अंदाज़ा भी नहीं है कि उसका मोबाइल नंबर, वोटिंग पैटर्न या निजी जानकारी चुनावी सौदेबाज़ी का हिस्सा बन चुकी है. डिजिटल इंडिया के दौर में यह मुद्दा सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि देशभर की राजनीति पर गहरा असर डाल सकता है.
डाटा का दुरूपयोग भविष्य के लिए बड़ा खतरा.
बिहार चुनाव 2025 एक बार फिर से यह साबित कर रहा है कि तकनीक जितनी लोकतंत्र को मज़बूत कर सकती है, उतना ही उसका दुरुपयोग लोकतंत्र की नींव हिला भी सकता है. डाटा का यह काला बाज़ार केवल चुनावी रणनीति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आने वाले समय में मतदाताओं की आज़ादी और निजी अधिकारों के लिए सबसे बड़ा खतरा बन सकता है.
देश और दुनिया के लिए जर्नलिस्ट इंडिया Journalist India को फॉलो करें…