कांवड़ यात्रा का दुःखद समापन

लेखक- योगेश मोहन ( वरिष्ठ पत्रकार और आईआईएमटी यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति )
वर्ष 2024 में सावन माह की शिवरात्रि का पर्व भक्तिभाव के साथ सम्पन्न हो चुका है। हिन्दु धर्म के अनुयायियों ने अत्यधिक भक्ति व उल्लास के साथ महादेव शिवजी का रूद्राभिषेक पर्याप्त विधि विधान के साथ पूर्ण किया। इस वर्ष लगभग 4.20 करोड़ कांवड़ियें, कांवड़ यात्रा के व्रत को पूर्ण करने के लिए हरिद्वार से गंगा का पवित्र जल लेकर अपने गंतत्व पर पहुँचें और अपने अराध्य देव भगवान शिवजी को अर्पित किया। उनकी यात्रा के पूर्ण होने पर हरिद्वार में लगभग 6500 टन गंदगी सर्वत्र व्याप्त करके प्रशासन के ऊपर सफाई के व्यय का बहुत बड़ा दायित्व छोड़ आए। इस वर्ष की कांवड़ यात्रा में प्रथम बार कुछ शिवभक्तों ने कांवड़ के वास्तविक पर्याय को इस रूप में अभिव्यक्त किया है कि वे अपने वृद्ध माता-पिता को कांवड़ में बिठाकर हरिद्वार से विभिन्न शिवालयों में दर्शन कराने ले गए, ऐसे भक्तों ने शिवजी से सही अर्थ में आशीर्वाद प्राप्त किया।
कावड़ यात्रा के बाद हरिद्वार के घाटों पर गंदगी का अंबार
           इस कांवड़ यात्रा का एक दुखदायी पहलू यह भी रहा है कि इस वर्ष सम्पूर्ण भारत के लगभग 500 युवा कांवड़िये आकस्मिक त्रासदी, यथा – रेल से कटकर, सड़क दुर्घटना भीषड़ गर्मी, गंगाजी में डूबकर, आपसी झगड़े, हृदयाघात, विद्युत करंट आदि से आकाल मृत्यु को प्राप्त हुए। यदि वास्तव में शिवजी को अपने भक्तों का कांवड़ लाना इतना अधिक प्रिय होता तो निश्चितः वे अपने भक्तो की रक्षा करने हेतु अवश्य ही आते, परन्तु इसके विपरीत, जो भक्त सच्ची श्रृद्धा के साथ केदारनाथ दर्शन करने पहुँचे, वहाँ पर तीव्र वर्षा के कारण, पहाड़ों के टूटकर गिरने पर हजारों भक्तों के फंसे होने पर भी भगवान शिव ने फौज को अपने अवतार स्वरूप उन भक्तों की रक्षार्थ भेज दिया, उन्होंने हेलिकाप्टर से सभी श्रृद्धालुओं की रक्षा की।
यह सावन माह की कांवड़ यात्रा, जिसमें भक्ति कम, आडम्बर अधिक होता है, इस यात्रा के दौरान लाखों मजदूर जीविका यापन नहीं कर पाते, उद्योगपतियों तथा व्यवसायियों को भी हजारों करोड़ रूपयों का नुकसान सहन करना पड़ता है, साथ ही यह कांवड़ यात्रा, प्रशासन व शासन के लिए भी एक अनावश्यक जिम्मेदारी है। इस प्रकार से जनता, शासन व प्रशासन के विभिन्न कष्टों की पर्याय, यह यात्रा किसी भी रूप में शिवभक्ति नहीं कहीं जा सकती, क्योंकि कोई भी भक्ति अथवा धार्मिक कार्य, ईश्वर के द्वारा रचित सृष्टि को दुख, कष्ट, प्रताड़ना देकर पूर्ण नहीं होती अपितु पाप की श्रेणी में आती है और इस कांवड़ यात्रा में करोड़ो कांवड़िये वास्तविक श्रृद्धाभाव के बजाय अंधभक्ति तथा मनोरंजन स्वरूप कर रहें हैं। इस प्रकार की यात्रा से किसी भी श्रृद्धालु को कोई भी धार्मिक लाभ प्राप्त नहीं होगा, यह लेखक का पूर्ण विश्वास है।
कांवड़ यात्रा के अंध विश्वास पर नियन्त्रण करें
        मैं भारत के सभी संतो, बुद्धिजीवियों एवं राजनेताओं से करबद्ध प्रार्थना करता हूँ कि इस धर्मांधता से परिपूर्ण कांवड़ यात्रा के अंध विश्वास पर नियन्त्रण करें, तथा भटके हुए युवावर्ग को कांवड़ यात्रा के वास्तविक अर्थ से अवगत कराएं, जिससे युवावर्ग तथा भावी पीढ़ी, अपने माता-पिता के प्रति आदर व श्रृद्धा का भाव जाग्रत कर पाए तो हम अनेको वृद्धाश्रमों में छोड़े हुए माता-पिता की दुर्दशा पर नियन्त्रण कर पायेंगे। यदि हमारें युवावर्ग ने अपने माता-पिता का आदर हृदय से करना प्रारम्भ कर दिया तो स्वयं ही शिव भक्ति हो जाएगी और शिव की कृपा के लिए उनको शिवालयों में नहीं भटकना होगा। सही कहा गया है कि माता-पिता के चरणों में ही तीनों धाम होते हैं। इस तथ्य का ज्ञान यदि युवाओं को हो जाए तो भारत में रामराज्य स्वयं स्थापित हो जाएगा।
ऊँ नमः शिवाय.
Journalist Yogesh Mohan
योगेश मोहन
( वरिष्ठ पत्रकार और आईआईएमटी यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति )
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