Akhilesh Yadav का लोकसभा में जोरदार भाषण, सरकार को घेरा! डिंपल यादव भी हुईं शामिल

Akhilesh Yadav ने अपने भाषण में सीमा सुरक्षा का मुद्दा उठाया और दावा किया कि लद्दाख में भारत को अपनी सीमा पीछे हटानी पड़ी है।

Akhilesh Yadav : लोकसभा के शीतकालीन सत्र में शुक्रवार और शनिवार (13-14 दिसंबर) को संविधान पर विशेष चर्चा के लिए समय निर्धारित किया गया। इस चर्चा की शुरुआत रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने की, जिसके बाद विपक्ष के नेताओं ने अपनी बात रखी। विपक्ष की ओर से पहले प्रियंका गांधी और फिर अखिलेश यादव ने अपनी राय व्यक्त की। इस दौरान अखिलेश यादव के साथ उनकी पत्नी और मैनपुरी से सांसद डिंपल यादव भी उपस्थित थीं, जो सदन में उनके पीछे बैठी थीं।

Akhilesh Yadav ने सीमा सुरक्षा और जातिगत जनगणना पर जोर

अखिलेश यादव ने अपने भाषण में सीमा सुरक्षा का मुद्दा उठाया और दावा किया कि लद्दाख में भारत को अपनी सीमा पीछे हटानी पड़ी है। उन्होंने कहा, “संविधान हमारा सुरक्षा कवच है, जो शोषित और वंचित वर्गों का संरक्षक है। लेकिन आज देश की सीमाएं सुरक्षित नहीं हैं, और कई स्थानों पर सीमा अतिक्रमण हुआ है।
उन्होंने जातिगत जनगणना का वादा करते हुए कहा कि जब भी उनकी पार्टी को मौका मिलेगा, वे इसे लागू करेंगे। अखिलेश ने आरोप लगाया कि वर्तमान सरकार आरक्षण को कमजोर करने का प्रयास कर रही है और आउटसोर्सिंग व अनुबंध के नाम पर नौकरियों में दलितों और पिछड़े वर्गों के लिए स्थान नहीं छोड़ा गया है।

उपचुनाव और फर्जी एनकाउंटर का जिक्र

अखिलेश यादव ने यूपी उपचुनाव की घटनाओं का हवाला देते हुए आरोप लगाया कि मुसलमानों को वोट देने से रोका गया और कुछ स्थानों पर पुलिस अधिकारियों ने डराने-धमकाने का प्रयास किया। उन्होंने फर्जी एनकाउंटर पर सवाल उठाते हुए कहा कि “चुन-चुनकर मुसलमानों के घर तोड़े जा रहे हैं।

सरकार पर गंभीर आरोप

उन्होंने आरोप लगाया कि वर्तमान सरकार केवल 10 फीसदी लोगों के लिए काम कर रही है और सरकारी नौकरियां समाप्त कर आरक्षण से बचने का प्रयास कर रही है। अखिलेश ने संभल मस्जिद विवाद का उल्लेख करते हुए कहा कि “मस्जिदों के नीचे मंदिर ढूंढ़ने वाले लोग देश में शांति नहीं चाहते और तानाशाही की ओर बढ़ रहे हैं।”

संविधान बचाने का आह्वान

अखिलेश ने संविधान को बचाने को जीवन-मरण का सवाल बताते हुए कहा कि यह शोषित और कमजोर वर्गों के अधिकारों का रक्षक है। उन्होंने सरकार की नीतियों के खिलाफ “करो या मरो” आंदोलन की आवश्यकता पर बल दिया।

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