Dalai Lama News : बौद्ध धर्म के सर्वोच्च आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा ने 2 जुलाई को एक ऐतिहासिक संकेत देते हुए कहा कि उनके उत्तराधिकारी की घोषणा अब दूर नहीं है। हालांकि यह बयान आध्यात्मिक दृष्टि से सामान्य प्रतीत हो सकता है, लेकिन इसका राजनीतिक असर खासकर चीन में तुरंत महसूस किया गया है। चीनी सरकार ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि दलाई लामा की कोई “राजनैतिक वैधता नहीं है” और उनका उत्तराधिकारी तभी मान्य होगा जब वह चीन के स्वर्ण कलश प्रक्रिया से चुना जाए। चीन के विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि पुनर्जन्म भी राज्य के नियंत्रण में होना चाहिए.
क्यों इतना महत्वपूर्ण है दलाई लामा का उत्तराधिकारी?
तिब्बती बौद्ध परंपरा के अनुसार, दलाई लामा का पुनर्जन्म होता है, और नया दलाई लामा अपने पिछले जन्म की विशेषताओं को दर्शाने वाला होता है। वर्तमान में 14वें दलाई लामा की उम्र 90 वर्ष है, और तिब्बत तथा पूरी दुनिया में यह प्रश्न तेजी से उभर रहा है कि अगला दलाई लामा कौन होगा और कहा से आएगा?
इस बार एक अलग बात यह है कि दलाई लामा ने यह संकेत दिया है कि उनका उत्तराधिकारी स्वतंत्र दुनिया में जन्म लेगा, न कि चीन के कब्जे वाले तिब्बत में।
दलाई लामा के इस बयान से चीन घबराया हुआ है.?
चीन के लिए दलाई लामा केवल कोई धार्मिक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक राजनैतिक चुनौती है। यदि अगला दलाई लामा चीन के नियंत्रण से बाहर चुना जाता है, तो यह
.तिब्बती लोगों में वास्तविक नेतृत्व की भावना को मजबूत करेगा।
.चीन के द्वारा नियुक्त “सरकारी दलाई लामा” की वैधता पर सवाल खड़े करेगा।
.अंतरराष्ट्रीय मंचों पर तिब्बती मुद्दों को फिर से प्रमुखता दिला सकता है।
अब ऐसे में भारत, जो 1959 से दलाई लामा और निर्वासित तिब्बती समुदाय का मेज़बान है, इस मामले में बहुत ही संवेदनशील संतुलन बनाए हुए है। भारत आधिकारिक तौर पर “वन चाइना पॉलिसी” को मानता है, लेकिन धार्मिक स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक मूल्यों के तहत तिब्बती समुदाय को समर्थन देता है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर दलाई लामा का उत्तराधिकारी भारत में पहचाना जाता है, तो यह भारत-चीन संबंधों में एक नया मोड़ ला सकता है, खासकर जब अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख जैसे मुद्दे पहले से ही तनाव का कारण बने हुए हैं।
ऐसे में अब आगे क्या हैं संभावनाएं ?
ऐसे में दो दलाई लामा सामने आ सकते हैं जिसमें से एक निर्वासित सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त, और दूसरा चीन सरकार द्वारा नियुक्त।
वैश्विक समर्थन का बंटवारा: अमेरिका, जापान, यूरोप शायद स्वतंत्र उत्तराधिकारी को मान्यता दें, जबकि कुछ देश चीन के पक्ष में रहेंगे।
बौद्ध धर्म का राजनीतिकरण: धार्मिक नेतृत्व अब पूरी तरह राजनीतिक पहचान का विषय बन चुका है।
दलाई लामा का उत्तराधिकारी केवल एक धार्मिक विरासत का विषय नहीं, बल्कि यह आध्यात्मिकता, राजनीतिक प्रभाव और अंतरराष्ट्रीय राजनीति का त्रिकोण बन चुका है। चीन की घबराहट बताती है कि तिब्बत का मुद्दा अभी खत्म नहीं हुआ बल्कि अब एक नया अध्याय शुरू हो रहा है। ऐसे में जब भारत दलाई लामा को समर्थन दे रहा है तो आने वाले दिनों में ये टकराव किस ओर जाता है इसपर हमारी नजरें बनी हुई हैं. और इस खबर से संबंधित अपडेट हम आपको देते रहेंगे.
रिसर्च टीम जर्नलिस्ट इंडिया